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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी की है। ऐसे कदाग्रह के कारण ही वे सत्य को प्राप्त नहीं कर सके। यही मशक्कत यदि सत्य को समझने की होती तो अपने मतकी मान्यताएं कितनी असत्य हैं, यह समझमें आ गया होता। प्रश्न : इन सब दृष्टांतोमें समाधि-बोधि की मांग कहां है ? ये अन्य मांगो के दृष्टांत हैं।समाधि-बोधि की मांग के कोई दृष्टांत हो तो दीजिए? उत्तर : उपरोक्त सभी दृष्टांतो में ते ते महापुरुषों ने देव-देवी से की गई विभिन्न मांगो तथा अन्य स्थलों पर शास्त्रों में दर्शाए सुविहित महापुरुषोंके दृष्टांत व उनकी देव-देवियों से की गई मांगे भी अंततः तो समाधि-बोधि की मांग के समान ही हैं। क्योंकि, ते ते महापुरुषों ने देव-देवियों से जो मांगें की हैं। वे स्व-पर की आराधना को निराबाध बताने के लिए ही हैं और शासन की प्रभावना व रक्षा के लिए की हैं। जब तक अंतराय हो, उपद्रव हो तथा उपसर्ग हों, तब तक धर्म आराधना निर्मल-निराबाध एवं वेगमान नहीं बन सकती । धर्म आराधना में अत्यंत आवश्यक उपशमभाव नहीं टिक सकता और इस कारण धर्म आराधना आत्मस्पर्शी, सुसंस्कारो की सर्जक, कुसंस्कारो की नाशक और इसलिए परभव का सामान नहीं बन सकती। अर्थात् उपद्रव आदि की हाजरीमें समाधि प्राप्त नहीं होती और इससे परभव में धर्म की प्राप्ति स्परुप बोधि का सर्जन नहीं हो सकता। इसलिए आराधनामें आनेवाले अंतराय-उपद्रव-उपसर्ग दूर करना अत्यावश्यक है। किन्तु हमारे पास उन्हें दूर करने का सामर्थ्य नहीं। उस समय सम्यग्दृष्टि देव-देवीकी सहायता ली जाती है। क्योंकि, उनके पास उपद्रवादि को दूर करने की दैवी शक्ति है। जैसे किसी श्रावक को आर्थिक-पारिवारिक परेशानी हो और दूर करने का स्वयं में सामर्थ्य न हो और उसके योग से ही आराधना न हो सकती हो तो वह श्रावक अन्य अच्छे परोपकारी व समर्थ श्रावक से सहायता मांगता है। वैसे ही
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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