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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी रत्नशेखरसूरिजी सच्चे कि इस पुस्तक के लेखक। वंदित्ता के सूत्रकार पू.श्री श्रुतस्थवीर भगवंत और टीकाकार श्री को देवों से समाधि-बोधि मांगने में कहीं भी तीर्थकरों की लघुता दिखाई नहीं दी, जबकि लेखकश्री को लघुता दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि यह प्रप्रदादागुरुकी कृपा का ही फल है। टीकाकारश्रीने श्रीमेतारज मुनिवरका दृष्टांत दिया है, जिसे मानने में आनाकानी करनी है तथा नए दृष्टांत मांगने हैं ? विचित्र स्थिति है न? क्या आवश्यकचूर्णि में श्री वज्रस्वामीजी महाराजाने क्षेत्रदेवताकी सहायता नहीं मांगी? क्या श्री वज्रस्वामी महाराजाने शासनरक्षा-प्रभावनार्थ फूल लाने के लिए देव-देवीकी सहायता नहीं मांगी थी? क्या कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिजीने देव-देवीकी सहायता नहीं मांगी? क्या शत्रुजय का उद्धार करने के लिए श्री वज्रस्वामीजीने नूतन कपर्दियक्ष की सहायता नही मांगी? क्या कलिकाल सर्वज्ञश्रीने श्रुतसाधना आगे बढाने के लिए सरस्वतीदेवीकी साधना करने हेतु कश्मीरकी ओर विहार नहीं किया था? क्या पू.महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजाने काव्य, न्याय आदि के साहित्य सर्जन के लिए सहायता प्राप्त करने हेतु सरस्वती देवीकी साधना नहीं की? ऐसे अनेक दृष्टांत शास्त्रों के पृष्ठेपर दर्शाए गए हैं।लेकिन लेखकश्री को ये दिखाई नहीं देते। उनकी तीन पुस्तिकाओं देखने पर ऐसा लगता है कि, उन्होंने अपनी मान्यता को सिद्ध करने के लिए शास्त्रपाठों के अर्थघटनमें काफी मशक्कत
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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