SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी होती है। लेखकश्रीने प्रथम पुस्तक के पृष्ठ २३-२४-२५ पर जो चर्चा की है, वह भी असत्य सिद्ध होती है। लेखक मुनिश्री जयानंदविजयीने चैत्यवंदन महाभाष्य का कही भी उल्लेख तक नहीं किया है। क्योंकि, वह ग्रंथ उनकी मान्यता का खंडन करता है । पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजीको चैत्यवंदन महाभाष्य ग्रंथ मान्य है। उनके इस अंतरंग अभिप्राय को ताक पर रखकर त्रिस्तुतिक मत के लेखकों ने पंचाशक वृत्ति के पाठ को अपनी मान्यता के समर्थन में संदर्भ रहित आगे किया है । इसलिए उनकी प्रस्तुति शास्त्र विरोधी एवं सुविहित परम्परा से विरुद्ध है और इसीलिए असत्य है। ___इस प्रकार त्रिस्तुतिक मतवालों ने अपनी मान्यता के समर्थन में जिन पंचाशकवृत्ति का 'तीसरा' पाठ पेश किया है, यह भी उनके मत को सिद्ध नहीं कर पाता है। बल्कि त्रिस्तुतिक मान्यता का खंडन करता है और चतुर्थ स्तुति का ही समर्थन करता है। इस प्रकार त्रिस्तुतिक मतवाले अपनी मान्यता में जिस व्यवहार भाष्य की 'तिन्निवा' गाथा, बृहत्कल्पभाष्यकी 'निस्सकड' गाथा को आगे करते हैं, उससे उनका मत सिद्ध नहीं होता बल्कि इन गाथाओं से ही उनके मत का खंडन हो जाता है। पंचाशक प्रकरण का पाठ भी त्रिस्तुतिक मत के प्रति ही अरुचि दर्शाता है। प्रश्न : सम्यग्दृष्टि देवताओं के पास समाधि एवं बोधि मांगी जा सकती है ? यदि उनके पास समाधि-बोधि मांगी जा सकती है, तो क्यों मांगी जाए ? क्या देवता समाधि-बोधि देने में समर्थ हैं ? उनसे प्रार्थना करने से सम्यक्त्व मलीन नहीं होगा? उत्तर : सम्यग्दृष्टि देवताओं से समाधि-बोधि मांगी जा सकती है और वे बोधि-समाधि देने में समर्थ हैं। क्योंकि, वे समाधि-बोधिकी प्राप्तिमें अंतराय
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy