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________________ ३६ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी "तथा पू.अभयदेवसूरिजी महाराज ने 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीना' इस प्रकार ‘किल' शब्द का प्रयोग करके तीन स्तुति के मत के प्रति अपनी अरुचि व्यक्त की है। पू.आचार्य श्री हेमचंद्रसूरिजी महाराज ने अनेकार्थ संग्रह में कहा है कि, 'वार्ता संभाव्ययोः किल हेत्वरुच्योरलीके च' वार्ता, संभावना, हेतु, अरुचि व असत्य इन पांच अर्थोमें किल' शब्द का प्रयोग होता है।" कहने का आशय यह है कि, 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीना' पद की प्रस्तुति करते हुए पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजीने 'किल' शब्द का प्रयोग अन्य की बात के प्रति अरुचि करने के लिए किया है। अर्थात् किसी की मान्यता है कि, 'तीन थोय ही प्राचीन है व चौथी थोय नवीन है'- इस अन्य की बात में अपनी अरुचि पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजीने 'किल' शब्द से दर्शाई है। इससे अन्य वादी जो तीन थोय को ही मानने का रवैया रखता था, उसके प्रति अरुचि प्रकट की है। अर्थात् तीन थोय के मत के प्रति अरुचि प्रकट की है। पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजी चैत्यवंदन महाभाष्य को सभी प्रकार से मान्य रखते हैं। इसमें दर्शाई गई चार-आठ थोय की चैत्यवंदना भी उन्हें मान्य है ही।(यह हम पूर्व में देख ही चुके हैं।) पाठक, दोनों लेख पढकर तय कर पाएंगे कि, मुनिश्री जयानंदविजयजी ने पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी के अर्थ में जोड़तोड़ की है या नहीं ? तथा मुनिश्री ने पू.आ.भ.श्री की पुस्तककी बाद की टिप्पणी को ग्रहण नहीं किया, जो निम्नानुसार है। 'तथा चैत्यवंदन महाभाष्य गाथा-७७२-७७३-७७४ तथा संघाचार भाष्य गाथा-३५की वृत्ति आदि प्राचीन ग्रंथोके आधार पर भी चार थोय का समर्थन होता है।' लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजीने अपनी 'सत्य की खोज' पुस्तक के पृष्ठ-८७ पर प्रश्न-३३० में भी अपने ढंग से अपनी मान्यता पुष्ट करने के लिए पंचाशक के पाठ की चर्चा की है। यह भी उपरोक्त विचारणा से असत्य सिद्ध
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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