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________________ ३८ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी भूत विघ्नों का नाश करने में समर्थ हैं । उनके समक्ष ऐसी प्रार्थना करने से सम्यक्त्व मलीन नहीं होता। क्योंकि, किसी भी शास्त्रमें ऐसा उल्लेख देखने को नहीं मिलता । प्रश्न: आपकी इस बात को सिद्ध करनेवाला कोई शास्त्रीय उल्लेख है सही ? उत्तर : हां, इन सभी बातों का खुलासा पू. आ. भ. श्री रत्नशेखरसूरिजीने श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्रकी अर्थदीपिका टीका में वंदित्ता सूत्र की ४७ वीं गाथा के 'सम्मदिट्ठि देवा' पद के विवरण में विस्तार से पूर्वोत्तर पक्ष की रचना द्वारा किया है । यह पाठ इस प्रकार है । " तथा सम्यग्दृष्टयः - अर्हत्पाक्षिक देवा देव्यश्चेत्येकशेषाद्देवाः धरणेन्द्राम्बिकायक्षादयो 'ददतु' प्रयच्छन्तु 'समाधि' चित्तस्वास्थ्यं, समाधिर्हि मूलं सर्वधर्माणां स्कन्ध इव शाखानां शाखा वा प्रशाखानां पुष्पं वा फलस्य बीजं वाऽड्कुरस्य, चित्तस्वास्थ्यं विना विशिष्टानुष्ठानस्यापि कष्टानुष्ठानप्रायत्वात्, समाधिश्चाधिव्याधिभिर्विधूयते, तन्निरोधश्च तद्धेतुकोपसर्गनिवारणेन स्यादिति तत्प्रार्थना, ' बोधिं' परलोके जिनधर्मप्राप्तिं यतः "सावयघरंमि वर हुज्ज चेइओ नाणदंसणसमेओ । मिच्छत्तमोहिअमई मा राया चक्कवट्टीवि ॥१॥" , कश्चिद्ब्रूते - ते देवाः समाधिबोधिदाने किं समर्था न वा ? यद्यसमर्थास्तर्हि तत्प्रार्थनस्य वैयर्थ्यं, यदि समर्थास्तर्हि दूरभव्याभव्येभ्यः किं न यच्छंति ? अथैवं मन्यते योग्यानामेव समर्था नायोग्यानां, तर्हि योग्यतैव प्रमाणं किं तैरजागलस्तनकल्पैः ? अत्रोत्तरं, सर्वत्र योग्यतैव प्रमाणं, परं न वयं विचाराक्षमनियतिवाद्यादिवदेकान्तवादिनः, किन्तु सर्वनयसमूहात्मकस्याद्वादवादिनः, 'सामग्री वै जनिके' ति वचनात् यथा हि घटनिष्पत्तौ मृदो योग्यतायामपि कुलालचक्रचीखरदवरक दण्डादयोऽपि सहकारिकारणमेवमिहापि जीवस्य योग्यतायां सत्यामपि तथा तथा
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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