SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी २७ पू.आत्मारामजी महाराजा के नाम से लेखक ने दुष्प्रचार किया है, जो असत्य है, यह पूज्य आत्मारामजी महाराजाकी उपरोक्त बात से सिद्ध होता है। त्रिस्तुतिक मत की असत्यता को-शास्त्र विरुद्धता को पू.आत्मारामजी महाराजाने चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१-२में विस्तार से कहा है। ये दोनो ग्रंथ देखने के लिए पाठकों से अनुरोध है। हालांकि, मुनिश्री जयानंदविजयजीने संदर्भहीन अनेक शास्त्रपाठोंको तथा अनेक आचार्य भगवंतो आदि के संदर्भहीन उल्लेखोंको अपनी मान्यता के समर्थन में अपनी दोनों पुस्तकों में जगह-जगह दर्शाया है। शास्त्रपाठ एवं महात्माओं के वचन कुछ अलगही दर्शाते हैं, और मुनिश्रीने उनकी बातों को अपने पक्षमें गलत तरीके से उपयोग करके लोगों को भ्रम में डालने का प्रयास किया है। इनमें से एक नमूना ऊपर हमने देखा। प्रश्न: मुनिश्री जयानंदविजयजी अनेक आचार्य भगवंतो आदि के संदर्भहीन उल्लेखों को अपने पक्षमें गलत तरीके से पेश करते हैं, ऐसा आपजो कहरहे हैं, तो इसके लिए कोई प्रमाण भी दे सकते हैं? उत्तर : हां, ऐसे एक नहीं किन्तु कई प्रमाण दिए जा सकते हैं। जैसे कि, १- पू.पं.श्री कल्याणविजयजी म.सा. चार थोय मानते हैं और तीन थोय के खंडन के लिए पुस्तक भी लिख चुके हैं, फिर भी उनके प्रतिक्रमण विधि संग्रह के पाठ गलत परिप्रेक्ष्य में पेश किए गए हैं। २- पू.आ.भ.श्री भुवनभानुसूरिजी म.सा.भी चार थोय मानते हैं। फिर भी उनके परमतेज' पुस्तक के अंश गलत परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किए गए हैं। ३- पू.आ.भ.श्री आत्मारामजी म.सा. चार थोय के समर्थन व तीन थोय के खंडन के लिए दो पुस्तकें लिख चुके हैं। फिर भी उनके जैनतत्त्वादर्श' ग्रंथ के अंशो को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। ४- पू.आ.भ.श्री रामचंद्रसूरिजी म.सा. के प्रवचन अंश भी गलत
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy