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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी महाभाष्य ग्रंथ सुविहित महापुरुषकी रचना है। उसके विरुद्ध बात करना उत्सूत्र नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जाए ? यह पाठक स्वयं विचार करें। प्रश्न: मुनिश्री जयानंदविजयजी ने पू. आत्मारामजी महाराजाको अपने पक्षमें खड़ा करने का प्रयत्न करते हुए प्रथम पुस्तक के पृष्ठ-१७ पर कहा है कि, २६ “जैन तत्त्वादर्श पुस्तक में श्री आत्मारामजी ने भी स्पष्ट लिखा है कि तीन स्तुति करते अगर समय ज्यादा हो जाता है और ज्यादा मंदिर हो तो प्रत्येक मंदिर में एक एक स्तुति बोलें । तो इस बारे में आप क्या कहते हैं ? 44. उत्तर : मुनिश्री जयानंदविजयजी की यह बात लोगों को भ्रममें डालनेवाली है। क्योंकि, पू. आत्मारामजी महाराजा द्वारा रचित चतुर्थस्तुतिनिर्णय (भाग-१) में पृष्ठ-२१ पर उपरोक्त बात का खुलासा करते हुए कहा गया है कि, 'कल्पभाष्य की गाथा का यही लेख हमारे द्वारा रचे हुए जैन तत्त्वादर्श पुस्तक में है । तिस लेख का यही उपर लिखा हुआ अभिप्राय है, तो फिर श्रीरत्नविजयजी और श्रीधनविजयजी जैनशास्त्र का एवं मेरा अभिप्राय जाने विना लोगों से कहते हैं कि आत्मारामजी ने भी जैन तत्त्वादर्श में तीन ही थुई कही हैं। ऐसा कथन करके भोले लोगों सें प्रतिक्रमण के आद्यंत की चैत्यवंदना में चौथी थुई छुड़ाके फिरते हैं । तो हमारा अभिप्रायोंके जाने विना ही लोकोंके आगे हमारा झूठा अभिप्राय जाहिर करना यह काम क्या सत्पुरुषोंको करना योग्य है ? जेकर आप दोनोकों परभव बिगडनेका भय होवेगा तब इस कल्पभाष्य की गाथा को आलंबके प्रतिक्रमण की आद्यंत चैत्यवंदनामें चौथी थुई का कदापि निषेध न करेंगे अन्यथा इनकी इच्छा। हम तो जैसा शास्त्रो में लिखा है वैसा पूर्वाचार्यों के वचन सत्यार्थ जानके यथार्थ सुना देते हैं। जो भवभीरु होवेगा वह अवश्य मान्य लेवेगा । इति कल्पभाष्य गाथा निर्णय: "
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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