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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी तो अपने पास समय का अभाव होने पर प्रत्येक जिनमंदिर में एक-एक थोय कही जा सकती है। उपरोक्त बात को ही मुनिश्री जयानंदविजयजीने अपनी पुस्तकमें दोहराया है। परन्तु उपरोक्त बृहत्कल्पभाष्य की गाथा से उनकी मान्यता सिद्ध नहीं होती । क्योंकि, चैत्यवंदना के जो नौ भेद चैत्यवंदन महाभाष्य में बताए गए है, उनमें से छठवें भेदवाली चैत्यवंदना बृहत्कल्प भाष्यकी गाथामें दर्शायी गई है। यह छठवीं भेदवाली चैत्यवंदना चैत्य परिपाटीमें की जाती है, यह चैत्यवंदन महाभाष्य में स्पष्ट उल्लेख है । इसलिए देववंदनप्रतिक्रमणमें भी तीन थोय की चैत्यवंदना करना उपरोक्त गाथा से सिद्ध नहीं होता। प्रश्न : चैत्यवंदना के नौ भेद कौन से है? उत्तर : अवसर प्राप्त चैत्यवंदना के नौ भेद बताए गए हैं और इनमें से छह भेद के लिए ग्रंथकारश्री ने जो निर्देश दिए है, वे भी अब आगे बताए गए हैं। चिइवंदणा तिभेया, जहन्न उक्कोस मज्झिमा चेव । एक्केक्का वि त्रिभेया, जेट्ठ विजेट्ठा कणिट्ठा य ॥१५३॥ -चैत्यवंदना के जघन्य, मध्यम तथा श्रेष्ठ ये तीन प्रकार हैं । प्रत्येक चैत्यवंदन के भी जघन्य, मध्यम व श्रेष्ठ ये तीन प्रकार हैं। (इस प्रकार चैत्यवंदन के कुल नौ प्रकार हैं।) (अब ये नौ भेद कैसे होते हैं यह बताते हैं।) एगनमोक्कारेणं होइ कणिट्ठा जहन्निआ एसा। जहसत्तिनमोक्कारा जहनिआ भन्नइ विजेट्ठा ॥१५४॥ स च्चिय सक्कथयंता, नेया जिट्ठा जहन्नियासन्ना । स च्चिय इरिआवहिआसहिआ सक्कथयदंडेहिं ॥१५५॥ मज्झिमकणिट्ठिगेसा, मज्झिम (वि) जेट्ठा उ होइ सा चेव । चेइयदंडयथुइएगसंगया सव्वमज्झिमया ॥१५६॥
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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