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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी प्रश्न : त्रिस्तुतिक मतवाले अपने मत के समर्थन में और कौन सा पाठ प्रस्तुत करते हैं? उत्तर : त्रिस्तुतिक मतके लेखक अपनी मान्यता की पुष्टि के लिए दूसरा एक बृहत्कल्प भाष्य की गाथा का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इसे भी देखेंगे और इसमें भी वे कैसी भूल करते हैं अथवा इरादापूर्वक उस प्रमाण को गलत तरीके से अपने पक्ष में कैसे प्रस्तुत करते हैं, यह देखेंगे। यह पाठ किसलिए है और वे किसलिए उपयोग करते हैं, यह विचार करेंगे तो उनकी अनभिज्ञता स्वयमेव प्रकट हो जाएगी। त्रिस्तुतिक मत के आ.यतीन्द्रसूरिजीने 'श्री सत्यसमर्थक प्रश्नोत्तरी' पुस्तक के पृष्ठ-१७ पर तीन थोय के चैत्यवंदन का समर्थन करने के लिए क्षमाश्रमण श्रीसंघदास गणिकृत बृहत्कल्पभाष्य की निम्नलिखित गाथा की साक्षी दी है। निस्सकडमनिस्सकडे, चेइए सव्वेहिं थुई तिन्नि । वेलं व चेइयाणं, तओ एक्कक्किआ वावि ॥१॥ पू.आ.भ.श्री रत्नशेखरसूरिकृत स्वोपज्ञ श्राद्धविधि प्रकरण में उपरोक्त गाथा की व्याख्या इस प्रकार है। निस्सकडेति निश्राकृते-गच्छ प्रतिबद्धे, अनिश्राकृते च तद्विपरीते चैत्ये, सर्वत्र चैत्ये तिस्रः स्तुतयो दीयन्ते । प्रतिचैत्ये स्तुतित्रये दीयमाने वेलाया अतिक्रमो भवति भूयांसि वा तत्र चैत्यानि । ततो वेलां चैत्यानि वा ज्ञात्वा प्रतिचैत्यमेकैकापि स्तुतिर्दातव्या। __ भावार्थ : गच्छ प्रतिबद्ध मंदिरको निश्राकृत जिनमंदिर कहा जाता है। अर्थात् किसी निश्चित गच्छ के जिनमंदिर को निश्राकृत जिनमंदिर कहते हैं। गच्छ के प्रतिबंध रहित मंदिर को अनिश्राकृत जिनमंदिर कहा जाता है । इन गच्छ प्रतिबद्ध तथा अप्रतिबद्ध सभी जिनमंदिरो में तीन-तीन स्तुतियां कहें । प्रत्येक जिनमंदिरमें तीन थोय कहने में काफी समय लगता हो तथा जिनमंदिर अधिक हो
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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