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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी २३ मज्झिमजेद्वा स च्चिय, तिन्नि थुईओ सिलोयतियजुत्ता । उक्कोसकणिट्ठा पुण, स च्चिय सक्कत्थयाइजुया ॥ १५७ ॥ थुइजुयलजुयलएणं, दुगुणियचेइयथयाइदंडा जा । सा उक्कोसविजेट्ठा, निधिट्ठा पुव्वसूरीहिं ॥ १५८ ॥ थोत्तपणिवायदंडगपणिहाणतिगेण संजुआ एसा । संपुन्ना विन्नेया, जेट्ठा उक्कोसिया नाम ॥१५९॥ भावार्थ : एक नमस्कार करने से जघन्य जघन्य (चैत्यवंदनाका) प्रथम भेद होता है । (१) यथाशक्ति अधिक नमस्कार करने से जघन्य मध्यम दूसरा भेद होता है । (२) नमस्कार के बाद शक्रस्तव ( नमुत्थुणं) कहने से जघन्योत्कृष्ट तीसरा भेद होता है । (३) इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंडक एक व एक स्तुति, यह कहने से मध्यम जघन्य चौथा भेद होता है । (४) इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंडक एक व लोगस्स कहने से मध्यम-मध्यम पांचवां भेद होता है । (५) इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, अरिहंत चेइयाणं - थोय, लोगस्ससव्वलोए थोय, पुक्खरवरदी - सुयस्स थोय, सिद्धाणं बुद्धाणं० की तीन गाथा, इतना कहने से मध्यमोत्कृष्ट छठवां भेद होता हैं। (६) इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तवादि दंडक पांच, स्तुति चार, नमुत्थुणं, जावंति एक, जावंत एक, स्तवन एक व जयवीयराय, इतना कहने से उत्कृष्ट जघन्य सातवां भेद होता है। (७) आठ थोय, दो बार चैत्यस्तवादि दंडक, यह कहने से उत्कृष्टमध्यम आठवां भेद होता है। (८) स्तोत्र, प्रणिपात दंडक, प्रणिधान तीन, यह सहित आठ थोय, दो बार चैत्यस्तवादि दंडक, इतना कहने से उत्कृष्टोत्कृष्ट नौवां भेद होता है। (९) (१५४ से १५९)
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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