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________________ २० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी अर्थ अपनी दोनों पुस्तकों में कैसे बदला है? उत्तर : 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ-२३ पर 'तिन्निवा' गाथा का अर्थ निम्नानुसार लिखा है। "साधुओंको मुख्यतया श्रुतस्तव (पुक्खरवरदीवड्डे) के बादमें सिद्धाणं बुद्धाणं के तीन श्लोक प्रमाण तीन स्तुतियां कही जाय, तब तक जिनमंदिर में रहने की ही आज्ञा है। यदि विशेष कारण हो तो अधिक समय भी रहने की आज्ञा है।" ___ 'सत्य की खोज' पुस्तक के (नूतन संस्करण के) पृष्ठ-८२ पर 'तिन्निवा' गाथा का अर्थ निम्नानुसार लिखा है। "साधुओं को मुख्यता से तीन श्लोक प्रमाण तीन स्तुतियां कही जाय, उस समय तक जिनमंदिर में रहने की ही आज्ञा है। अगर विशेष कारण हो तो ज्यादा समय भी रुहने की आज्ञा है।" लेखकश्रीने प्रथम पुस्तकमें 'सिद्धाणं बुद्धाणं' की तीन स्तुतियां बोलने की बात की है। इस पाठ का इस प्रकार अर्थघटन करने के बाद ऐसा लगता है कि, पू.पं.श्री कल्याणविजयजीम.सा. के त्रिस्तुतिक मत मिमांसा (भाग-१) तथा पू.आत्मारामजी महाराजा के चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ तथा पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी के पंचाशक भाषांतर में 'तिन्निवा' गाथा का अर्थ देखकर अपनी दूसरी पुस्तक में अर्थ बदला है। किन्तु उस पाठ का रहस्य नहीं दर्शाया है। क्योंकि, वह दर्शाएं तो अपना मत स्वयं असत्य सिद्ध हो जाता है। साथ ही सत्य समझते होने के बावजूद कदाग्रह से सत्य स्वीकार करने से इनकार किया लगता है। इस गाथा का रहस्य हमने पूर्वे देखा है। इस प्रकार पाठक समझ सकेंगे कि, त्रिस्तुतिक मत के लेखकों ने 'तिन्निवा' गाथा को अपने मतके समर्थन में प्रस्तुत किया है, वह बिल्कुल असत्य है।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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