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________________ १३६ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी चूर्णिकार, भाष्यकार, टीकाकार ने अपने काल्पनिक मत की सिद्धि के लिए चूर्णि, भाष्य तथा टीका आदि की रचना नहीं की है। बल्कि पू.गणधर भगवंत रचित (वंदित्ता) सूत्र की जानकारी देने के लिए, सूत्र के रहस्य बताने के लिए चूर्णि आदि की रचना की है।चूर्णिकार आदि परमर्षि ऐसे तुच्छ नहीं थे कि, अपने मत की सिद्धि के लिए कुछ गाथाएं या पद जोड़ दे और अनुकूल न हों वे पद निकाल दें अथवा बदल दें। चूर्णिकार आदि महर्षियों के लिए ऐसे आरोप लगाना यह भारी कर्मीपन का लक्षण है। सिद्धांत में प्ररुपणा की गई है कि, सूत्र की रचना पू.गणधर भगवंतो ने की है। नियुक्तिकी रचना पू.श्रुतकेवली महाराजने की है। भाष्य की रचना पूर्वगत सूत्रधारी ने की है। चूर्णि की रचना पू.बहुश्रुत परमर्षियों ने की है । वृत्ति (टीका) की रचना पू.श्री सिद्धसेनाचार्य आदि पू.आ.भगवंतोने की है। इससे पाठक सोचें कि, चूर्णिकार आदि परमर्षियोने सूत्र में काट-छांट की है, कि लेखकश्रीने अपने मतकी सिद्धि के लिए कुतर्क किए हैं। हालांकि मुनि जयानंदविजयजी ने अपनी दोनों पुस्तकों में ऐसे आरोप नहीं लगाए हैं . अर्थात् 'पूर्वमें वंदित्तासूत्र ५० नहीं बल्कि ४३ गाथात्मक था और देव-देवीके पक्षकारोंने इसमें सात गाथाओं का प्रक्षेप किया है, यह आरोप नहीं लगाया है। इससे पूर्व के लेखकों की बात सुधार ली गई है। परन्तु ५० गाथात्मक वंदित्तासूत्र को मानकर ४७वीं गाथा के उत्तरार्ध में 'सम्मत्तस्स य सुद्धि' पद होना चाहिए, ऐसी सूत्रविरोधी-टीकाविरोधी बात की है। अंततः तो अपने मत की पुष्टि करने का ही काम किया है। सूत्रभेदकका ही काम किया है। प्रश्न : प्रतिमाशतक ग्रंथ में वंदित्तासूत्र की गाथा कितनी कही गई हैं ? और वंदित्तासूत्र के कर्ता कौन बताए गए हैं ?
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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