SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १३७ उत्तर : प्रतिमाशतक ग्रंथमें वंदित्तासूत्र के कर्ता एवं गाथा प्रमाण की चर्चा की गई है, यह निम्नानुसार है। कश्चिदाह - एतत् श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रं न गणधरकृतं किन्तु श्रावककृतं, तत्रापि 'तस्स धम्मस्स' इत्यादि गाथादशकं ( अष्टकं ?) केनचिदर्वाचीनेन क्षिप्तमित्यादि । स क्षिप्तसारबीजजः (क्षिप्तसारबीजः ?) सहसाऽज्ञातकथने तीर्थंकरादीनां महाशातनाप्रसगात् । न हि क्वाप्येतत्सूचकं प्रवचनमुपलभामहे, नवाऽच्छिन्नपरंपरागतवृद्धवचनमीदृक् केनचित् श्रुतं, किन्तु यस्य सूत्रादेः कर्ता नामग्राहं न ज्ञायते प्रवचने च सर्वसंमतं यत्, तत्कर्ता सुधर्मास्वाम्येवेति वृद्धवादः भणितं च तथा विचारामृतसङ्ग्रहेऽपि। भावार्थ : पूर्वपक्ष : इस वंदित्तासूत्र की रचना पू.गणधर भगवंतोने नहीं की है। बल्कि श्रावक ने की है। इसमें भी 'तस्स धम्मस्स' इत्यादि अंतिम दस (अथवा आठ ?) गाथाएं किसी आधुनिक श्रावक ने जोड़ी है। इसलिए इस सूत्रमें अंतिम गाथाएं प्रमाणभूत नहीं है। उत्तरपक्ष : अज्ञात विषय में इस प्रकार उतावले निर्णयों से श्री तीर्थंकर आदि की आशातना हो रही है। इस बारेमें विवेक रखना चाहिए था। आगम में अथवा अन्यत्र कहीं भी आप की बात को पुष्ट करनेवाला प्रवचन नहीं मिलता है और अविच्छिन्न श्रुतवृद्ध पुरुषों की परम्परा में भी कही आपके कथन के अनुरुप बात सुनने को नहीं मिलती है। बल्कि वृद्ध समुदाय तो ऐसा है कि, 'जिस सूत्रादि के कर्ता का नाम मिलता न हो और वह सूत्र संघमें सर्वमान्य हो, तो उस सूत्रके कर्ता के तौर पर पू.गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामीजी को ही स्वीकार करना है।' इसी बात की पुष्टि विचारामृत संग्रहग्रंथमें की गई है। इसलिए सर्वमान्य अज्ञात कर्तृक वंदित्तासूत्र के कर्ता सुधर्मास्वामी हैं। इस प्रकार ५० गाथात्मक सूत्र प्रमाणभूत है। प्रश्न : वंदित्तासूत्र के विषयमें किसी अन्य ग्रंथ में कोई स्पष्टता है?
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy