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________________ १३५ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी प्रश्न : आ.यतीन्द्रसूरिजी श्री सत्यसमर्थक प्रश्नोत्तरी' पुस्तक के पृष्ठ-३८ पर लिखते हैं कि, 'कुछ प्राचीन हस्तलिखित प्रतियोंमें वंदित्तासूत्र ४३ गाथात्मक देखने को मिलती है और ४३ वीं गाथा में समाप्ति सूचक 'वंदामि जिणे चउव्वीसं' यह अन्त्य मंगल भी है। इससे लगता है कि, प्राचीनकालमें वंदित्तासूत्र ४३ गाथा तक ही कहलाता था और बाद में देव-देवी की स्तुति के पक्षकारों ने इसमें अतिरिक्त सात गाथाएं शामिल कर दी हैं तथा अपने मत की सिद्धि के लिए उस पर चूर्णि, भाष्य एवं टीका आदि की रचना की है।' क्या यह बात उनकी सही है? उत्तर : लेखकश्री की उपरोक्त बातें मिथ्यात्व का भयंकर विलास हैं। हस्तलिखित पत्रोंमें वंदित्तासूत्र ४३ गाथात्मक है, उनकी यह बात सत्य के विरुद्ध है। 'इससे लगता है कि, प्राचीनकाल में वंदित्तासूत्र ४३ गाथा तक ही कहा जाता था ।' लेखकश्री की यह बात बिल्कुल असत्य है । क्योंकि, पू.महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजाने प्रतिमाशतक ग्रंथमें काव्य६७में वंदित्तासूत्र के रचयिता श्रीसुधर्मास्वामीजी गणधर परमात्मा बताए हैं और वंदित्तासूत्र ५० गाथात्मक बताया है। इस बात को अत्यंत सुंदर ढंग से सिद्ध किया गया है। (यह पाठ आगे देखेंगे।) 'और पीछे से देव-देवी की स्तुति के पक्षकारों ने उसमें सात गाथाएं शामिल कर दी हैं तथा अपने मतकी सिद्धि के लिए उस पर चूर्णि, भाष्य, टीका आदि की रचना की है।' -लेखकश्री का यह उन्मत्त प्रलाप है। पूर्वधर महर्षि आदि की घोर आशातना है। क्योंकि, लेखकश्री ने चूर्णिकार आदि पर आरोप लगाया है कि, उन्होंने सात गाथाओं का प्रक्षेप किया है और वह भी देव-देवी के पक्षकार बनकर।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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