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________________ १२६ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी के श्रुत अधिष्ठातृ देवता से विनती करना युक्त नहीं। क्योंकि, श्रुतदेवी दूसरे के कर्मों का क्षय करने में समर्थ नहीं। उत्तरपक्ष : आपकी यह बात योग्य नहीं । क्योंकि, श्रुताधिष्ठात्री श्रुतदेवी विषयक शुभ प्रणिधान भी स्मरणकर्ता के कर्मों का क्षय करनेमें कारण है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यह शास्त्रवचन इस प्रकार है। 'श्रुतदेवताका स्मरण कर्मका क्षय करनेवाला कहा गया है । 'वे श्रुतदेवता नहीं अथवा हों तो भी कोई कार्य करनेवाले नहीं, ' ऐसा कहना श्रुतदेवीकी आशातना है । ' यहां श्रुतदेवता के तौर पर श्रुताधिष्ठात्री देवी का ही व्याख्यान करना उचित है। जिनकी श्रुतसागर के विषय में भक्ति है, उनके हे ! श्रुताधिष्ठातृ देवता ! ज्ञानावरणीय कर्म के समूह का नाश करें । इस प्रकार वाक्यार्थ की उपपत्ति ( संगति) होने से तथा व्याख्यानांतर के विषयमें श्रुतरुप देवता श्रुतसागर में भक्तिवालों के ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय करें, यह अर्थ (व्याख्यान) सम्यक् नहीं बनता, सुसंगत नहीं होता । क्योंकि, श्रुत की स्तुति तो पूर्व में अनेक बार कह चुके हैं। इस कारण से यह पक्ष स्थिर बनता है कि, श्री अरिहंत परमात्माका पक्ष करनेवाली श्रुतदेवी को श्रुतदेवता के तौर पर ( 'सुयदेवया ' पदसे ) ग्रहण किया जाता है । नोट : पाक्षिक सूत्रके अंतमें श्रुतदेवता से विनती करने के लिए 'सुयदेवया' स्तुति बोली जाती है। इसमें श्रुतदेवता का अर्थ श्रुत अधिष्ठात्री देवी किया गया है। विशेष चर्चा उपरोक्त भावार्थ में की है। प्रश्न : अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिक्रमण की विधि में श्रावक के वंदित्सूत्रकी गाथा कितनी कही गई है ? और यदि ५० गाथात्मक
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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