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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १२५ उक्तरुप विज्ञापना युक्ता श्रुतभक्तेः कर्मक्षयकारणत्वेन सुप्रतीतत्वात् श्रुताधिष्ठातृदेवतायास्तु व्यंतरादिप्रकारायानयुक्ता तस्याः परकर्मक्षपणेऽसमर्थत्वादिति तन्न श्रुताधिष्ठात्री देवतागोचरशुभप्रणि- धानस्यापि स्मर्तुः कर्मक्षयहेतुत्वेनाभिहितत्वात्, तदुक्तं सुयदेवयाए जीए संभरणं कम्मक्खयकरं भणियं नस्थित्ति अकज्जकरीव एवमासायणातीए किंचेहेदमेव व्याख्यानकर्तृमुचितं येषां सततं श्रुतसागरे भक्तिस्तेषां श्रुताधिष्ठातृदेवता ज्ञानावरणीयकर्मसंघातं क्षपयित्विति वाक्यार्थोपपत्तेः व्याख्यानान्तरे तु श्रुतरुपदेवता श्रुते भक्तिमतां कर्मक्षपयत्विति सम्यग् नोपपद्यते श्रुतस्तुतेः प्राग् बहुशोऽभिहितत्वाच्चेति तस्मात् प्रस्थितमिदमहत्पाक्षिकी श्रुतदेवतेहगृह्यते इति ॥ भावार्थ : (प्रारम्भित पाक्षिक सूत्रकी समाप्ति में श्रुतदेवता से विनती करते हैं।) श्रुत अर्थात् अरिहंत परमात्मा का प्रवचन-आगम । इस अर्हत् प्रवचन की जो अधिष्ठाता देवी हैं, वे श्रुतदेवी (कहलाती) है। (इसलिए) श्रुतदेवता के रुप में श्रुताधिष्ठातृ देवी श्रुतदेवी होना संभव है । (कल्पभाष्य में कहा गया है कि, अर्हत् प्रवचन की अधिष्ठाता देवी, श्रुतदेवी होने की संभावना है।) इसलिए कल्पभाष्यमें कहा गया है कि, जो वस्तु लक्षणयुक्त होती है, वह सभी वस्तुएं देवता से अधिष्ठित होती हैं और सर्वज्ञभाषित सूत्र सर्व लक्षणों से युक्त हैं । इसलिए उसके अधिष्ठाता देवता हैं।(और वे ही श्रुतदेवी हैं।) । ___ हे पूज्य भगवती ! जीवों के ज्ञान की आशातना करने से उत्पन्न हुए ज्ञानावरणीय कर्म के समूह का नाश करें। जिनकी श्रुतसागर के विषय में निरंतर भक्ति, सन्मान तथा विनय है, उन जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म के समूह का नाश करें। ऐसा अर्थ किया जा सकता है। पूर्वपक्ष : श्रुतरुप देवता से उपरोक्त विज्ञप्ति (विनती) करना युक्त है । क्योंकि, श्रुतभक्ति कर्मक्षय के कारण के तौर पर प्रसिद्ध है। परन्तु व्यंतरादि प्रकार
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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