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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १२७ वंदित्तुसूत्र कहा गया है, तो ४७ वीं गाथा के उत्तरार्धमें 'सम्मदिट्ठी देवा' पद है कि 'सम्मत्तस्य य सुद्धि' पद हैं ? । उत्तर : अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिक्रमण की विधिमें वंदित्तुसूत्र ५० गाथात्मक ही कहा गया है और ४७ वीं गाथा के उत्तरार्ध में सम्मदिट्ठी देवा' पद ही है, यह पाठ निम्नानुसार है। अभिधान राजेन्द्रकोष, भाग-५, विभाग '५'कार, 'पडिक्कमण' विभागमें पृष्ठ-३११ पर श्रावक प्रतिक्रमण की विधि बताई गई है। यहां वंदित्तासूत्र की व्याख्या भी की गई है। वंदित्तासूत्र को ५० गाथात्मक ही कहा गया है। इसमें पृष्ठ-३१७ पर ४७वीं गाथा निम्नानुसार है। संप्रति मङ्गलपूर्वकं जन्मान्तरेऽपि समाधिबोध्याऽशंसमाह "मम मंगलमरहंता, सिद्धा साहु सुअंच धम्मो य । सम्मदिट्ठी देवा, दितु समाहिं च बोहिं च ॥४७॥" गाथा-४७ के उत्तरार्धकी टीका इस प्रकार है ......तथा सम्यग्दृष्टयोऽर्हत्पाक्षिका देवा भवनवास्याद्याः, ददतु प्रयच्छतु, समाधिं चित्तस्वास्थ्यं, बोधिं च प्रेत्यजिनधर्मप्राप्तिरुपाम्, आहते देवा समाधिदाने किं समर्था वा न वा ? यद्यसमर्थास्तहि तत्प्रार्थनस्य वैयर्थ्यप्रसङ्गः, यदि समर्थास्तर्हि सर्वभव्येभ्यः किं न प्रयच्छन्ति । अथैवं मन्यते योग्यनामेव ते समर्था नायोग्यानां, तर्हि योग्यतैव प्रमाणं, किं तैरजागलस्तनकल्पैः, अत्रोच्यते, सर्वत्र योग्यतैव प्रमाणं, परं न वयं विचाराक्षमनियतिवादादिवदेकान्तवादिनः किंतु जिनमतानुयायिनः । तच्च सर्वनयसमूहात्मकस्याद्वादमुद्रानतिभेदि, सामग्री वै जनिकेति वचनात् । यथा घट निष्पत्तौ मृदो योग्यतायामपि कुलालचक्र चीवरदवरकदण्डादयोऽपि तत्र सहकारिकारणं । एवमिहापि जीव योग्यतायां सत्यामपि तथाप्रत्यूहव्यूहनिराकरणेन देवा अपि यक्षाम्बाप्रभृतयः समाधिबोधिदाने समर्था भवन्ति मेतार्यादेरिवेत्यतो न
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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