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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख की पराकाष्ठा ग्रहण कर लेंगे । प्रजा निराधार होकर संकट में पड़ जायगी । महाराज! विचार करो, आप जैसे वीर पुरुष भी यदि धैर्य का त्याग करेंगे तो निराधार होकर धैर्यता किसका आश्रय लेगी । आप यह भली प्रकार जानते हैं कि रानी के प्राण रहित होने में कर्म ही कारण भूत है । इससे संसार की असारता प्रकटतया मालूम होती है, संसार की कोई भी वस्तु चिरकाल तक एक ही स्वरूप में नहीं रह सकती। इसलिए महापुरुषों का कथन है - राजनः खेचरेन्द्राश्च केशवाश्चक्रवर्तिनः । देवेन्द्रावीतरागाश्च, मुच्यते नैय कर्मणा ॥ राजा, विद्याधर, वासुदेव, चक्रवर्ती, देवेन्द्र और वीतरागों को भी कर्म नहीं छोड़ता । अहा! ऐसे सामर्थ्य वाले महापुरुषों को भी किये हुए कर्म का फल भोगना पड़ता है, तब फिर अन्य पुरुषों की बात ही क्या! महाराज! आप स्वयं इस कर्म के सिद्धान्त को जानते हैं, तथापि इस प्रकार पतंग के समान अज्ञान मृत्यु से मरना यह आप जैसे विवेकी पुरुषों के लिए योग्य नहीं है। ___ मंत्री के वचन सुनकर शोक से कुंठित और विचार शून्य हृदयवान् राजा ने उत्तर दिया - "मेरे हितेच्छु मंत्रीश्वरो! आप मुझे जो बोध दे रहे हैं, कर्म की परिणति, संसार की असारता और अनित्यता जानते हो यह सब कुछ मैं जानता हूँ, परंतु मोह की दशा विचित्र है । रानी के मोह से मोहित आत्मा मैं इस समय युक्तायुक्त कुछ भी नहीं विचार सकता । तथा जब रानी का दाहिना नेत्र फड़क रहा था और उसने मुझे अपने भावी अनिष्ट की सूचना दी थी तब मैंने उसके साथ ही अग्निशरण होने का उसे वचन दिया है । अपने मुख से बोला हुआ सुलभ कार्य भी अगर मुझसे न हो सके तो असत्यवादी मनुष्यों की श्रेणि में मेरा सबसे पहला नाम होगा । तुम्हें मालूम होगा कि जन्म से लेकर आज तक मेरा कोई भी वचन कभी अन्यथा नहीं हुआ । अगर इस समय मैं अपने वचन के अनुसार रानी के सात अग्निशरण होकर न मरूँ तो मेरा सत्यव्रत किस तरह रह सकता है? इसलिए प्यारे मंत्रीवरो! मेरे और रानी के शव के लिए एक बड़ी 34
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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