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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख की पराकाष्ठा चिता तैयार कराओ, कि जिसमें मैं तमाम दुःखों को भस्मीभूत करूँ । महाराजा को अनेक प्रकार से समझाया गया परंतु वह अपने मरण के निश्चय से जरा भी शिथिल न हुआ, तब तमाम मंत्री मंडल मौन धारण कर उदासीनता से एक तरफ खड़ा रहा । महाराज फिर से बोले - "मंत्रिश्वरो ! उदास होकर क्यों खड़े हो? तुम भी इस प्रकार निष्ठुर क्यों बनते हो? मैं कदापि जीवित न रहूंगा । समय बिताकर मुझे विशेष कष्ट क्यों पहुँचाते हो? राजा के यह वचन सुनकर कुछ भी उत्तर न देते हुए सारा ही मंत्री मंडल जमीन पर दृष्टि लगाये नतमस्तक होकर ज्यों का त्यों खड़ा रहा। चिता तैयार कराने के लिए मंत्रीमंडल की उपेक्षा देख राजा ने अपने दूसरे मनुष्यों को उस कार्य करने की प्रेरणा की । उन मनुष्यों ने निरुपाय होकर रानी के मृतक शरीर को स्नान कराकर, पुष्पादिक से अर्चनकर शिबिका में स्थापन किया । तमाम परिवार सहित राजा उस शिबिका के साथ राज महल को सूना छोड़ गोलानदी की तरफ चल पड़ा । यह घटना शहर में चारों तरफ बड़ी शीघ्रता से पसर गयी । रानी के विरह दुःख से दुःखित हो आज महाराज वीरधवल अग्नि में प्रवेशकर मरने के लिए जा रहे हैं । यह समाचार सुनते ही नगर के अबालवृद्ध तमाम मनुष्य हर एक जगह करुण स्वर से विलाप करने लगे । उस दिन नगर के तमाम मनुष्यों ने अन्न तो क्या किन्तु जलपान तक भी न किया । तमाम शहर में इस दुर्घटित घटना के समाचार से शोक की घनघटा छा गयी । नगर निवासी राजा के शोक से श्याम मुख वाले देख पड़ते थे। किसी भी मनुष्य के चेहरे पर प्रसन्नता दिख नहीं रही थी । उस रोज सर्वस्व खो गये हुए मनुष्य के समान सारे शहर के मनुष्य शून्य हृदयवाले मालूम होते थे । निरुपाय बने हुए मंत्रीमंडल के शोक का कुछ पार ही न था । ज्यादा क्या लिखें उस दिन राजकुल के सहित तमाम स्त्रीपुरुषों में दुर्दिन के समान उदासीनता ने भयंकर रूप धारण किया था । 1 नगर के बड़े से बड़े प्रजाजनों ने महाराज के चरणों में पड़कर उन्हें अपने निश्चय से पीछे हटने की प्रार्थना की । परंतु उन्होंने किसी की प्रार्थना पर लक्ष्य 35
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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