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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख की पराकाष्ठा भर आया और वह गद्गद् स्वर से विलाप करने लगा । 'हे देवी! तुझे सचेतन करने के ये तमाम प्रयोग निष्फल हो गये । अब तूं किस उपाय से जीवित होगी! हे प्रिये! इतने समय से इतने सारे उपाय करने पर भी तूं क्यों नहीं बोलती! मैं तो समझता हूँ कि तूं मुझे यहां अकेला छोड़ परलोक चली गयी है । प्यारी! तेरे बिना यहां पर मेरी एक घड़ी एक महीने के समान बीत रही है और दिन वर्ष के समान मालूम हो रहा है, तब फिर मेरा शेष आयुष्य किस तरह व्यतीत होगा! हे मृगाक्षी! मेरी शक्ति धिक्कार के पात्र है, क्योंकि तुझ पर आनेवाली इस घोर आपत्ति का पता लगने पर भी मैं तेरे रक्षण के लिए कुछ भी न कर सका । प्यारी! तूं कहां चली गयी? एक दफे आकर तूं मुझे अपना स्थान तो बता जा, जिससे मैं तेरा मुखकमल देखकर सुखी बनूं । इस तरह विलाप करते हुए दुःखित राजा को फिर से पूर्ववत् मूर्छा आ गयी । शीतोपचार करने से जागृति में आया हुआ राजा मंत्रियों से बोला - 'हे मंत्रिवरो! आप लोग सावधान होकर मेरी बात सुनो । इतना लंबा समय बीतने पर भी आप लोग रानी को जीवित नहीं कर सके । मैंने रानी के साथ ही मरना निश्चित किया है । रानी के वियोग में मेरे प्राण देह धारण करने के लिए सर्वथा असमर्थ हैं । मंत्रीश्वरो! अब विलंब न करो, गोला नदी के किनारे पर काष्ठ की एक चिता जल्दी तैयार करो कि जिससे रानी के वियोग में दग्ध हुई अपनी आत्मा को चिता में प्रवेश करके शांति दूं । ___ आँसुओं से पृथ्वी को भिगोते हुए मंत्री लोग बोले 'हा, हा! महाराज! आज हम सबके सब जीते हुए भी मृतक समान हो रहे हैं । सूर्य अस्त होने पर क्या कभी कमलाकर विकसित रह सकते हैं? पिता के मरने पर निराधार बच्चों की क्या दशा होगी? पानी बिना ज्यों मछलियाँ तड़फ तड़फकर प्राण खोती है, वैसे ही हे नाथ! आपके बिना पुण्य रहित अनाथ के समान हमारी क्या दशा होगी? कृपालू? हम पर प्रसन्न होकर आप इस मोह को कम करो और अपने किये हुए निश्चय को स्थगित करो । अर्थात् मरने का विचार छोड़कर चिरकाल तक राज्य पालन करो । आपके बाद शत्रु लोग इस राज्य को 33
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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