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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त करता ? परन्तु जो मुट्ठी-भर निर्दोष अन्न के लिए घर-घर फिरते हैं, उन्हें भक्तिपूर्वक दान देने में कितना महान् लाभ होता है, इस बात को समझनेवाले बहुत कम मनुष्य हैं। ___मुनिराज अन्यत्र विहार कर गये । मदन भी तपस्वी मुनि को नमस्कारकर वापिस उस तालाब की पाल पर आ गया और मुनिदान से अपने आपको कृतार्थ मानते हुए उसने शेष बचा हुआ दूध पी लिया । जंगल में मनुष्यों के विशेष उपयोग में न आने के कारण इस जंगली तालाब के किनारे इंटो या पत्थर से बाँधे हुए नहीं थे । एवं मदन भी अनजान होने से उस तालाब की गहराई या उसके अन्दर उतरने का सरल मार्ग न जानता था । वह उसके किनारे पर बैठकर नीचे झुककर तालाब में से पानी पीने लगा। इतने में ही उसका पैर फिसल जाने से वह तुरन्त ही तालाब में जा गिरा, तालाब के किनारों के पास ही अगाध जल था । मदन तैरना नही जानता था। अतः वह तालाब से बाहर न निकल सका । उसे निकालने वाला भी उस जंगल में नजदीक में कोई नहीं था। इसलिए बिचारे मदन को तालाब में ही अपने प्राण त्यागने पड़े। शुभभावना पूर्वक मुनिदान के प्रभाव से मदन मृत्यु पाकर इसी सागर तिलक शहर के राजा विजय के घर पुत्र रूप में पैदा हुआ । उसका कंदर्प नाम रक्खा गया । विजय राजा की मृत्यु के बाद कंदर्प ही इस शहर का राजा बना। इधर प्रियमित्र भी सुन्दरी के साथ विलास करता हुआ आनन्द में अपने दिन बिता रहा था। परन्तु इस विषयानन्द में उसने अपनी दूसरी रूद्रा और भद्रा दोनों पत्नियों के साथ अनेक प्रकार की दुश्मनी पैदा कर ली थी । एक दिन प्रियमित्र सुन्दरी को साथ लेकर धनंजय यक्ष के दर्शन करने जा रहा था । चलते हुए वे एक वटवृक्ष के विस्तार से अलंकृत प्रदेश के पास आये, वहाँ पर उन दोनों ने अपने सन्मुख आते हुए एक मुनि को देखा । मुनि के दर्शन से प्रियसुन्दरी के मन में अपशुकन की भावना पैदा हुई । वह सोचने लगी कि यात्रा के लिए जाते हुए हमें सबसे पहले यह नंगे सिरवाला ही मिला है इस अपशुकन से हमारी यात्रा सफल न होगी, बल्कि और भी कुछ उपद्रव होगा । इत्यादि बोलती हुई सुन्दरी 215
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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