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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त उसके गोकुल में उस समय एक बिना दूही भैंस थी, अतः उसने उस भैंस को दूहकर मदन को बहुत - सा दूध दे दिया । मदन बोला - यह नजदीक में जो तालाब दिख पड़ता है वहाँ जाकर मुँह - हाथ धोकर वहाँ ही मैं दूध पीऊँगा । चरवाहे ने खुशी से वहाँ पर दूध का घड़ा ले जाने की सम्मति दी । मदन दूध के घड़े को लेकर तालाब के किनारे आया । शुभ भावना से वह सोचने लगा मुझे आज अन्नजल ग्रहण किये दो दिन हो गये, यदि इस समय कोई अतिथि महात्मा तपस्वी आदि उत्तम पात्र मिल जाय तो उसे इस दूध में से हिस्सा देकर फिर पारणा करूँ तो मेरा जन्म सफल हो जाय । मैंने अपने जीवन में कुछ भी सुकृत नहीं किया । इसी से मेरी यह दुर्दशा हुई है। इस समय मेरे पास खाने पीने तक के लिए भी कुछ साधन नहीं । ऐसी विषम स्थिति में भी अगर कोई महात्मा दर्शन दे तो मैं इस द्रव्य में से उसे हिस्सा दे कुछ सुकृत उपार्जन करूँ । जिस समय मदन पूर्वोक्त प्रकार के विचार कर रहा था ठीक उसी समय उसके सद्भाग्य से वहाँ पर एक मासोपवासी तपस्वी आ पहुँचा । वह तपस्वी मासोपवास के पारणे के लिए नजीक के गाँव की तरफ जा रहा था । तपस्वी को देखकर मदन के विशुद्ध परिणाम में और भी वृद्धि हुई । वह हर्षित होकर विचारने लगा - अहो ! मेरा सद्भाग्योदय है, जिससे मनोरथ करते ही इस महापुरुष के दर्शन हो गये। मैं इन्हें दूध में से कुछ हिस्सा दूँ, यह निश्चयकर उसने मुनि के रास्ते की तरफ जाकर भक्तिपूर्वक हाथ जोड़कर कहा - "हे महात्मन्! कृपालु मुनिराज ! यह निर्दोष दूध ग्रहण करके मेरा कल्याण करो । मदन का शुभ परिणाम देखकर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में उस द्रव्य को विशुद्ध समझकर तपस्वी ने इच्छानुसार उसमें से कुछ दूध ग्रहण किया । मदन ने भी शुभ परिणाम से उस महातपस्वी को दूध का दान देकर विशेष पुण्य उपार्जन किया। - सचमुच ही ऐसी गरीब स्थिति में और फिर दो दिन की सहन की हुई भूख - प्यास में भी खाद्य या पेय पदार्थ प्राप्तकर के अतिथि महात्मा को दान देने की जो भावना पैदा होती है यही भावी शुभ दिनों की सूचना का लक्षण हैं । ऐसी परिस्थिति में योग्यपात्र को दिया हुआ थोड़ा सा भी दान महान् फलदायक होता है । मरे को कौन नहीं मारता, सुखी और धनाढ्यों का कौन नहीं सत्कार 1 214
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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