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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र आगन्तुक - युवक उन बनियों ने अच्छी तरह समझ लिया कि उस तूंबे में सिद्धरस है । इस कारण उन लोभांध वणिकों ने रस सहित तूंबे को किसी गुप्त स्थान में छिपा लिया । कितने एक दिन के बाद वह युवक फिर वापिस चन्द्रावती में आया और माने हुए प्रमाणिक उन वणिकों के पास से उसने अपना तूंबा वापिस मांगा । उन दंभी व्यापारियों ने जवाब दिया कि आपका तूंबा चूहों ने डोरी काट देने के कारण नीचे पड़कर फूट गया और उसमें रहा हुआ रस तमाम जमीन पर बह गया! इस प्रकार जवाब देकर किसी अन्य तूंबे के टुकड़े लाकर उसे दिखलाये। टुकड़े देख उस युवा पुरुष ने समझ लिया कि मेरे तूंबे में रहे हुए लोह भेदक रस को इन्होंने किसी न किसी प्रकार जान लिया है । इसी कारण ये मेरे तूंबे को छिपाते हैं । युवा पुरुष बोला - सेठ! मेरा तूंबा मुझे वापिस दे दो, ये टुकड़े मेरे तूंबे के नहीं हैं। कपट से आप मुझे झूठा उत्तर मत दो। आप न्यायवान् हैं, मैंने आपको प्रमाणिक और विश्वासु समझकर ही आपके पास रक्षण के लिए तूंबा रखा है । यदि आप मेरे साथ विश्वासघात करेंगे तो आपके लिए भी महान् अनर्थ होगा । मैं किसी तरह भी विश्वासघात का बदला लिये बिना न रहूंगा । इत्यादि अनेक प्रकार से उन दोनों व्यापारियों को समझाया, परंतु लोभ के वशीभूत हो; उन वणिकों ने उसके कथन की बिलकुल परवाह नहीं की । युवक ने विचारा कि अगर यह बात मैं राजा से जाकर कहुं तो यह ऐसी वस्तु है कि इसे राजा खुद ले लेगा । क्योंकि लक्ष्मी को देखकर किसका मन नहीं ललचाता? दूसरी तरफ ये लोभांध व्यापारी भी मुझे सरलता से मेरे पास का तूंबा वापिस दे यह असंभवित है । मुझे अभी बहुत दूर जाना है । अतः समय खोना भी ठीक नहीं । मुझे अब अंतिम उपाय का ही आश्रय लेना चाहिए । "शठं प्रति शाठ्यं कूर्यात्" शठ के साथ शठता ही करना, धूर्तों के साथ धूर्त बनना और सरल मनुष्यों के साथ सरलता का व्यवहार करना योग्य है" इस प्रकार विचारकर उसके पास जो स्तंभनकारी विद्या थी, उस विद्या के प्रभाव से उस युवक ने दोनों भाइयों को स्तंभित कर दिया और अपने किये का फल पाओ! यह कहकर वह वहाँ से अन्यत्र चला गया। 1 उस विद्या के योग से वे दोनों भाई ऐसे स्तंभित हो गये कि उनके अंगोपांग 6
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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