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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख में वियोगी मिलन गया होगा? ये तमाम बातें इस स्त्री से ही मालूम होंगी । इसके शरीर पर नक्रचक्रादि जलचर प्राणियों के किये हुए ही ये अनेक व्रण मालूम होते हैं। इससे यह भी साबित होता है कि यह स्त्री किसी जहाज के डूब जाने से समुद्र में बहुत दिनों से पड़ी होगी । इन तमाम बातों को जानने की उत्सुकता से कंदर्प बोला - सुंदरी! मैं सागर तिलक बंदर का कंदर्प नामका राजा हूं । तूं जरा भी भय न रखना। सच कहो, तुम कौन हो? तुम्हारी ऐसी स्थिति क्यों हुई? यह मच्छ कहां से यहां पर तुम्हें ले आया? राजा के शब्द सुनकर मलयासुंदरी को कुछ आनंद और कुछ खेद पैदा हुआ। यह सोचने लगी - अहा! अभी तक भी मेरे भाग्य का अवशेष जागृत है । यहां पर कुछ आशा किरणों के पड़ने का संभव होता है । उस दुष्ट सार्थवाह ने भी मुझे पुत्र सहित प्रथम यहां ही लाकर रखा था। जिस शहर में उसने मेरे पुत्र को रखा है । वही यह सागर तिलक शहर है । कर्मों ने मुझे फिर यहां ही ला पटका, संभव है किसी तरह मुझे यहां मेरे प्यारे पुत्र के दर्शन हो जायें। दूसरी तरफ मुझे यहां पर यह भय भी है, कि यह कंदर्प राजा मेरे पिता और मेरे श्वशुर का कट्टर दुश्मन है । इसके सामने मुझे बड़ी सावधानता से रहना होगा। इसको अपना परिचय देना मेरे लिये और भी भयंकर संकट दायक होगा! यह सोच मलयासुंदरी ने उत्तर दिया । राजन् ! इस दुर्भाग्य मनुष्य का वृत्तान्त सुनने की आपको क्या आवश्यकता है ? मेरे वृत्तान्त से आपको कुछ भी लाभ न होगा। मैं दूर देश की रहनेवाली अपने पुण्य नाश के कारण ऐसी दशा को प्राप्त हुई हूँ। मलयासुन्दरी के दुःख पूर्ण उद्गार सुनकर राजा के साथी बोले - महाराज ! यह बेचारी इस समय दुःखभार से दबी हुई है, अपने इष्ट मनुष्यों के वियोग से दुःखित हुई मालूम होती है । इसी कारण अच्छी तरह यह बोल भी नहीं सकती । इस समय इससे कुछ भी न पूछकर इस पर कुछ उपकार करना चाहिए । राजा फिर बोला - भद्रे ! इस समय तूं अत्यन्त दुखी मालूम होती है ; तथापि अपना नाम तो बतला । मलयासुन्दरी ने मंदस्वर से उत्तर दिया- "मेरा नाम मलया है । राजा 166
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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