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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख में वियोगी मिलन ने तुरन्त ही राजपुरुषों से पालखी मँगवायी और मलयासुन्दरी को पालखी में बैठाकर वह अपने राजमहल में ले गया । उसने वैद्यों को बुलाकर संरोहिणी औषधी द्वारा मलयासुन्दरी का शरीर ठीक कराया । औषधी के प्रभाव और दासियों की परिचर्या से उसका शरीर थोड़े ही दिनों में पहले जैसा कान्ति और तेजवान् हो गया। मलयासुन्दरी का शरीर अच्छा होने पर उसके सौन्दर्य और तेज़ को देख राजा ने उसे एक जुदे महल में रखकर उसकी सेवा में अनेक दास - दासियाँ नियुक्त कर दी, अब उस का सुन्दर वस्त्रालंकारों से विशेष सत्कार किया जाने लगा । इस सत्कार के कारण मलयासुन्दरी को कंदर्प राजा का मनोगत भाव जानने में कुछ भी देर न लगी । यह सोचती थी कि यह विशेष सम्मान मुझे सुखदाई न होगा । कुछ दिनों के बाद उसका किया हुआ अनुमान सच मालूम हुआ । उसके रूप और लावण्य से मुग्ध हो राजा कन्दर्प ने अपनी दासी के द्वारा मलयासुन्दरी के समक्ष अपने मन का भाव प्रकट किया । उसने उसे अपनी पटरानी बनाने के लिए तरह - तरह के प्रलोभन दिये। परंतु मलया सुन्दरी अपने सतीत्व को प्राणाधिक समझकर जरा भी विचलित न हुई । जब दासियों द्वारा और खुद अपनी प्रार्थनाओं से भी कार्य सिद्ध होता हुआ न देखा तब वह एक रोज मलयासुंदरी के पास जाकर बोला – सुन्दरी ! दोनों तरफ से प्रेम से ही सांसारिक सुख का आनन्द आता है, इसलिए मैं तुम्हें बार - बार समझाता हूँ कि तुम मुझे प्रेमपूर्वक अंगीकार करो अन्यथा मैं तुम्हें अपनी पत्नी तो बनाऊँगा ही। मुझे तुम्हारे रूप और सौन्दर्य ने मुग्ध बना दिया है मलयासुन्दरी - धिक्कार है मेरे इस सौन्दर्य को, जिसके कारण मैं नरक के समान मानसिक और शारीरिक यातनायें भोगती हूँ। महाराज ! आप एक प्रजा के राजा हैं; राजा का कर्तव्य है कि वह पुत्री के समान अपनी प्रजा का पालन करे । जब आपके जैसे न्यायवान् राजा न्याय को छोड़कर अन्याय में प्रवृत्ति करें तो संसार में न्याय किसके पास रहेगा ? रक्षक स्वयं भक्षक बन जाय तो फिर उसकी रक्षा कहाँ होगी ? दूसरी यह भी बात है कि एक सती के शील को विध्वंस करने का प्रयत्न करनेवाले पापी मनुष्य संसार में अपनी अपकीर्ति फैलाते हैं और जन्मान्तर में नरकादि की घोर 167
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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