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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र लगा । इधर प्रातःकाल होने पर जब ढूंढने से भी राजकुमार का पता न लगा तब राजा के दुःख का पार न रहा । वह समझ तो गया कि अपनी प्रिया के वियोग से कुमार यहां पर नहीं रह सका। उसकी खोज के लिए ही वह रात में एकाकी चला गया मालूम होता है । अभी तक महाराज शूरपाल को एक ही चिंता थी किन्तु कुमार के जाने से उन पर डबल चिंता का भार आ पड़ा । उसने दोनों की तलाश में चारों तरफ राज पुरुषों को भेजा । निर्वासित जीवन सूर्य निकल आया, वैसा ही जैसा चमकीला और सूर्ख रंग का हंमेशा निकला करता है। आसमान भी वैसा ही नीला है । जंगल के दरखतों का वैसा ही नीला रंग देख पड़ रहा है, सब कुछ वैसा ही जैसा कि मैं बचपन से देखती आ रही हूं । परंतु दुर्भाग्यवश खुद मैं ही वह नहीं हूं जो कल थी। यह मैं जानती हूं कि बदनसीबी अकेली ही नहीं आती, किन्तु अपने साथ और भी नयी नयी आफतों को ले आती है । जब संकटों का सिलसिला शुरु हुआ है तब वह अपना पूरा जोर दिखाये बिना न रहेगा । हतभाग्य मलयासुंदरी! अब तूं आनेवाले इन तमाम संकटों का सामना करने और निर्वासित जीवन बिताने के लिए कठिन हृदय बन जा । राजा और राजपुरुषों को इसमें क्या दोष है ! मेरा अशुभ कर्म उदय होने पर वे सब निमित्त बन गये हैं । परंतु मेरे हृदय में यह बात अधिक खटकती है कि मुझे मेरे बुद्धिमान श्वसुर ने किस अपराध में निर्वासित किया है? इस प्रकार का अविचारित कार्य करने के लिए उन्हें अवश्य ही महान् पश्चात्ताप होगा । हे नाथ! आप तो मेरे सुख के लिए ही मुझे घर छोड़ गये थे । परंतु आपके बिना मेरे नसीब में सुख कहां लिखा है! जब आप युद्ध से वापिस लौटेंगे तब मेरी यह दुर्दशा सुनकर आपके प्रेमी हृदय को कितना दुःख होगा! प्यारे ! क्या इस जीवन में मुझे फिर से आपका समागम हो सकेगा ? हा ! मैंने जो कुछ भी अपने सुख के लिए किया था वह सब कुछ उल्टा हो गया । इन्हीं विचारों में वह पागल सी बनकर नीचे का गाना गाने लगी . - 156
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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