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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा राजा - 'कोतवाल! यह पुरुष कौन है? इसने पहनी हुई पोशाक महाबल कुमार की मालूम होती है । ' कोतवाल - 'महाराज! यह युवक शहर के दरवाजे में प्रवेश करते हुए मेरे देखने में आया है। इसका नाम स्थान पूछने पर यह कुछ भी उत्तर नहीं देता ।' राजा - ' (मलयासुंदरी के सन्मुख देख ) क्यों भाई तूं कौन है? किसका पुत्र है?' यह सुन मलयासुंदरी विचार में पड़ी। यदि इस समय मैं अपनी सत्य बात कहूंगी तो राजा आदि किसी भी मनुष्य को उस पर विश्वास न आयगा, क्योंकि हम दोनों के मिलाप और विवाह की घटना ही ऐसी है जो सुननेवाले को असंभवित मालूम हो; तथा इस समय मेरा स्वरूप भी पुरुष का है । इसलिए जबतक मुझे अपने स्वामी का मिलाप न हो तब तक सत्य घटना प्रकाशित न करनी चाहिए । जो कुछ मेरे नसीब में है सो होगा। यह सोचकर उसने कल्पित उत्तर दिया- 'मैं महाबल कुमार का प्रियमित्र हूँ, उसीने मुझे यह तमाम वेष दिया है ।' सूरपाल - "महाबल कुमार इस समय कहाँ है?" मलया - "कहीं नजदीक में ही स्वेच्छापूर्वक फिरता होगा । सूरपाल - "कुमार नजदीक में ही हो तो वह अपने कथन किये वचनानुसार हमें क्यों न आ मिले? कुमार कहीं नजदीक में नहीं हो सकता । अगर यहां नजदीक में ही होता तो चारों तरफ तलाश कराने पर भी उसका पता क्यों न लगता? खैर यदि तूं मेरे पुत्र का प्रियमित्र है तो इन तमाम मनुष्यों में से कोई भी मनुष्य तुझे क्यों नहीं पहचानता? यह सुन मलयासुंदरी ने कुछ भी उत्तर न दिया और वह चुपचाप खड़ी रही ।" राजा सूरपाल मन ही मन विचारने लगा - यह संभव होता है कि कुछ दिन पहले कुमार के वस्त्रादि चुराये गये थे, यह सब अलंब पर्वत की गुफा में रहनेवाले प्रचंड चोर लोहखुर ने ही चुराया होगा, जिसे कल ही मरवा दिया गया है । यह 117
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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