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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा हे निठुर विधि! तेरी भी अजब गति है! मनुष्य क्या विचारता है और तूं उसके विपरीत क्या से क्या कर डालता है? इस समय मानवसंचार रहित अंधेरी रात में केलों के बगीचे में मलयासुंदरी पुरुष के रूप में अकेली बैठी है । बार - बार हठ करके पति की इच्छा के विरुद्ध उनके साथ जाना योग्य नहीं । यह समझकर ही मलयासुंदरी ने इस समय महाबल के साथ जाने का आग्रह नहीं किया । वह थोड़े समय का वियोग दुःख सहकर भी एक दुःखिनी स्त्री का पति के द्वारा कष्ट दूर हुआ देखने के लिए उस्तुक थी । इसी कारण उसने मौन द्वारा अपने पति को दुःखिया का दुःख दूर करने की संमति दी थी। मेरे स्वामी अभी आयेंगे, वे इस दिशा में गये हैं; इस प्रकार सोच विचार करती हुई महाबल के आगमन की आशा में टकटकी लगाकर वह उसी तरफ देखती रही । पिछली रात बीत गयी, प्रातःकाल होने पर सूर्यदेव भी उदयाचल पर आ गया; परंतु आशा तरंगों में डुबकियें खानेवाली मलयासुंदरी का हृदयेश्वर न आया। ऐसे अपरिचित जंगल में मुझे अकेली छोड़ न जाने वे कहाँ गये होंगे जो अभी तक भी नहीं आये? माता-पिता को मिलने की उत्कंठा से क्या वे शहर में तो नहीं चले गये होंगे? इत्यादि संकल्प विकल्प करती हुई मलया सुंदरी ने शहर में जाने का निश्चय किया । जब वह शहर के दरवाजे के पास पहुंची तब उसे सन्मुख आते हुए शहर का कोतवाल मिला । दिव्यवेष और सुंदररूप देखकर कोतवाल ने उसका नाम स्थान पूछा, परंतु पुरुषवेश में मलयासुंदरी उसके प्रश्न का उत्तर न देकर सोच विचार में पड़ गयी और घबराये हुए मनुष्य के समान वह चारों तरफ देखने लगी । इससे कोतवाल को और भी अधिक वहम पैदा हुआ। उसके पास क्या क्या वस्तुएँ हैं, यह तलाश करने पर कानों में पहने हुए कुंडल और शरीर पर धारण किये हुए वस्त्र महाबल कुमार के मालूम हुए यह देख कोतवाल आश्चर्य में पड़कर विचारने लगा – महाबल कुमार के वस्त्र और इस युवक के पास? कोतवाल उसको पकड़कर राजा के पास ले आया । उसका रूप और वेष देखकर राजा आदि सब आश्चर्य में पड़ गये । 116
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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