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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा युवक उसी का छोटा भाई या स्नेही अथवा उसके सगे संबंधियों में से मालूम होता है और उसके वियोग से उदासीन या संभ्रांत हो उसे देखने के लिए जहां तहां फिरता हुआ मालूम होता है । कुमार के कुंडल और वस्त्र भी इसे उस चोर के पास से ही मिले होंगे, तथा अल्पभाषी और विशेष मौनीपन यह चोर का लक्षण भी इस में पाया जाता है । यह भी संभव है कि इन चोरों ने मिलकर कहीं पर कुमार को मार डाला हो ? इस कारण यह मनुष्य भी मेरा दुश्मन ही है । इन विचारों की उलझन में भयभ्रांत हो राजा सूरपाल बोल उठा- अरे! कोतवाल! इस चोर को भी जहां कल उस चोर को मारा है वहां ले जाकर मार डालो! राजा के शब्द सुनकर मलयासुंदरी का हृदय कांप गया । उसने सोचा दुर्दैववश अब फिर मुझपर मरणांत आपत्ति का घोर बादल आ घिरा । इस संकट का निस्तार कैसे होगा? धैर्य पाने के लिए इस समय उसने महाबल द्वारा याद कराये उस श्लोक को स्मरण किया । उसको याद करने से उसके हृदय में धैर्य ने प्रवेश किया। वह खुद ही अपने आपको आश्वासन देने लगी। अपने शुभाशुभ कर्म पर निर्भर होकर उसने अपने हृदय में हिंमत धारण की । उसकी शांत और तेजस्वी आकृति देख मंत्री - मंडल पर उसका बड़ा प्रभाव पड़ा । अकस्मात् राजा की अविचारित प्रचंड आज्ञा से मंत्रीमंडल में खलबली मच गयी । अतः प्रधान मंत्री बोला - "महाराज ! इस युवक की ऐसी भद्र और सुंदर आकृति से यह अनुमान नहीं हो सकता कि यह चोर होगा? इस दिव्य पुरुष ने अपराध किया है यह निर्णय जब तक न हो जाय तब तक इसे प्राणदंड की शिक्षा देना सर्वथा अनुचित है । तथापि इस विषय में आपकी भ्रांति दूर न हो सकती हो तो आप इसकी कोई दिव्य परीक्षा ले सकते हैं । यदि उस कठिन परीक्षा से इसका पराभव हुआ तो इसे चोर समझा जायगा; अगर उस परीक्षा में इसका पराभव न हुआ तो इसे निर्दोष माना जायगा । इस प्रकार करने से जनता में भी आपका अपवाद न होगा । राजा ने कहा तुम्हारा कहना यथार्थ है । परंतु इसकी परीक्षा किस तरह की जाय ?" 118
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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