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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा ही समय में एक छोटे से पहाड़ की मेखलापर आकर स्थिर हुआ । वटवृक्ष से नीचे उतर वे तमाम व्यंतर गोला नदी के किनारे पर रहे हुए धनजंय नामक यक्ष के मंदिर की तरफ चले गये । महाबल ने गौर से देखकर इस प्रदेश को पहचान लिया था । अतः वह मलयासुंदरी से बोला – 'प्रिये! अभी तक हमारा पुण्य जागृत है । यह वटवृक्ष हमारे पृथ्वीस्थान नगर के समीप ही आ पहुंचा है। अब हमें शीघ्र ही इस वटवृक्ष के आश्रय का त्याग कर देना चाहिए । यदि देवाज्ञा से यह वृक्ष फिर वापिस या कहीं आगे उड़कर चला गया तो फिर न जाने हम किस विषमस्थान में जा पड़गे । यों कह तुरंत ही महाबल और मलयासुंदरी उस बड़ की खोखर से बाहर निकल आये । और नजदीक में रहे हुए एक केलों के बगीचे में जाकर दोनों ने विश्राम पाया । कुछ देर बाद उस वटवृक्ष को फिर आकाश में उड़ता देख महाबल बोला - सुंदरी! देखो वह वृक्ष फिर वापिस अपने स्थान पर जा रहा है । बहुत अच्छा हुआ हम लोग उसकी खोखर से निकल यहां आ गये । अभी रात बहुत बाकी थी इसीलिए निर्भयता से वे दंपती केलों के बगीचे में बैठकर समय बिता रहे थे । इतने ही में करुण स्वर से रुदन करती हुई किसी एक स्त्री का शब्द कुमार के कर्णगोचर हुआ । उस स्त्री का रूदन शब्द सुनकर महाबल बोला - प्रिये! यह किसी दुःखित स्त्री के विलाप का शब्द सुनायी देता है । समर्थ पुरुषों का यह कर्तव्य है कि वे दुःखी जनों की सहाय करें। तुम यहां ही रहो और धीरज रखो । मैं इस दुःखिनी को सहाय करके अभी वापिस आता हूं । अब यहां पर किसी प्रकार का डर रखने की आवश्यकता नहीं। क्योंकि यह सब हमारे नगर की ही हद का प्रदेश है । मलयासुंदरी इस बात का कुछ उत्तर न दे सकी, इसीलिए उसे वहां पर ही छोड़ दयापूर्ण हृदयवाला महाबल परदुःख दूर करने के लिए उस रुदन के शब्दानुसार ही उस दिशा में चल पड़ा। ___अंधेरी रात! तेरे कर्तव्य भी तेरे ही समान काले होते हैं । तूने चंद्रावती में राजा वीरधवल को पुत्री तथा जमाई का वियोगकर संकट में डाला और अब मलयासुंदरी को भी तुरंत ही पतिवियोग कराकर दुःख के खड्डे में डाल दिया? 115
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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