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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा दूसरा व्यंतर - एक जगह एक घटना बनने की तैयारी है। परंतु वह घटना कल बनेगी और उसका स्थान भी यहां से कुछ दूर है। तीसरा - कहो तो सही कहां पर क्या घटना बनेगी? दूसरा - "आप सावधान होकर सुनें, पृथ्वीस्थानपुर के नरेश शूरपाल राजा के एक महाबल नामक कुमार है । उसकी माता रानी पद्मावती का एक हार किसी ने हरण कर लिया है, उसके लिए अपनी माता के समक्ष महाबल ने ऐसी प्रतिज्ञा की है कि यदि पांच दिन के अंदर मैं उस हार को ढूंढकर तुम्हें न दे दूं तो अग्नि में प्रवेशकर मर जाऊँगा । इसी तरह की प्रतिज्ञा उसकी माता ने भी की है कि यदि पांचवें दिन हार न मिले तो मैं भी जीवित न रहूंगी । हार की खोज में गये हुए कुमार का अभी तक कोई पता नहीं लगा । और वह प्रतिज्ञावाला पांचवाँ दिन कल सुबह ही होगा । उस अपने कुमार और हार की खोज न मिलने से मरने के लिए उत्सुक हुई रानी को देखकर ही मैं अब यहां आया हूँ । न जाने वह रानी किस तरह से प्राण देगी । यह भी संभव है कि रानी की मृत्यु से राजा भी जीवित न रहेगा। ___व्यंतर देवों के उपरोक्त वचन सुनकर राजकुमार महाबल कुतुहल छोड़ चिंता में मग्न हो गया । वह सोचता है कि देवताओं का वचन असत्य नहीं होता। सचमुच ही इनकी कथन की हुई घटना का होना संभवित है । मैं कैसा मूढ़ हूँ प्रतिज्ञा भ्रष्ट होकर, यहां पर अभी तक विलासकर रहा हूँ और वहां पर दुःखार्त हो मेरे कुटुंब का क्षय उपस्थित हो रहा है। इतने ही में फिर एक व्यंतर की आवाज सुनायी दी । वह बोला - चलो, इस वक्त वहां चलकर हमें कौतुक देखना चाहिए । दूसरा व्यंतर हाँ, यह तो ठीक है । इस घटना को अवश्य देखनी चाहिए। सबकी संमति होने पर सबने मिलकर हुंकार शब्द बोला और हुंकार के साथ ही वह वटवृक्ष, कुमार तथा मलयासुंदरी सहित आकाश मार्ग से उड़ चला। यह हम प्रथम ही लिख चुके हैं कि महाबल और मलयासुंदरी उस वटवृक्ष की ही खोखर में चुपचाप खड़े होकर व्यंतरों का वार्तालाप सुन रहे थे । हवाई जहाज के समान अति वेग से आकाश मार्ग द्वारा उड़ता हुआ वह वटवृक्ष थोड़े 114
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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