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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। महात्मा लोगोंके व्रत रूप रत्न वल्लभ हैं याने सर्वथा प्राणातिपातका त्याग, सर्वथा झूठ बोलनेका त्याग, सर्वथा चोरीका त्याग, सर्वथा नारी संगतिका त्याग और सर्वथा धन संपद् का त्याग रखना, ये पाँचों वल्लभ हैं । लेकिन गुरुदेव ! आप जैसे किसी विरले ही सत्पुरुषने उन महाव्रत रूप रत्नोंकी शुद्ध प्रकारसे रक्षा की है ॥ ६०२ ॥ निर्दोष आहारपानी १ शय्या-याने विछानेके लिये कम्बलादि,२ वस्त्र, ३ और पात्र ४ ये चारों दोष रहित ग्रहण करना, और पात्र १, पात्रबन्धनजो वस्त्रकी चौखुणी झोली २, पात्रस्थापन-सब उपकरणोंको रखनेके वास्ते कम्बलका १ खण्ड ३, पात्रकेसरिया-पात्रादि पूंजनेके लिये छोटी चरवली-पूंजणी ४, पड़ला-गोचरी जानेके समय पात्रों पर ढांकनेके वास्ते तीन अथवा पाँच वस्त्रों के खण्ड ५, रजस्त्राण-पात्र वींटनेका चौकोण वस्त्र ६. गोच्छक-पात्रोंको ऊपर और नीचेसे मजबूत बान्धनेके वास्ते कम्बलके २ टुकड़े ७, ये सातों ही पात्रनियोग कहलाते हैं । तथा दो कपड़े सूतके ८-९, ऊनकी १ काम्बल १०, रजोहरण-धर्मध्वज ११, मुखवस्त्रिका १२, मात्र-गुरुपात्र विशेष १३, और चोलपट्टक १४, साधुओंके इन चउदह उपकरणोंके सिवाय अधिकतर वस्त्रादि नहीं रखना । एवं कपड़े धोनेमें अकारण साबू सोड़ा आदि क्षारके समूहको आपश्रीने अपने काममें कभी नहीं लिये ॥ ६०३ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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