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________________ श्रीराजेन्द्र गुणमञ्जरी । वाचकगण ! मन्दसोर, खाचरोद, कूकसी, जावरा, लक्ष्मणि - तीर्थ, आहोर, खरसोद, दशाई, थराद, निम्बाहेड़ा, राजगढ़, रींगनोद, बड़नगर, सियाणा, बागरा, हरजी आदि गाँव नगरोंमें बड़ी ही आस्था पूर्वक महोत्सव करते हुए श्रावक वर्ग एवं अन्य दर्शनीय लोग भी अपने २ कार्यकी सिद्धिका पण [बोलमा] बोलकर गुरुराजकी मूर्तियों को पूज रहे हैं ।। ५९८ ।। ५९९ ॥ १५६ पूजनाद्दर्शनाद् भक्त्या, गुरुमूर्तेः स्तुतेः किल । जपनात्तज्जनानां च, सिद्ध्यन्ति स्वेष्ठ सिद्धयः || ६०० || तदग्रे भावयन्त्येव, लोकाः सर्वत्र भावनाम् । तदीयसद्गुणग्रामं, कीर्तयन्तः स्तुवन्ति वै ।। ६०१ ॥ वल्लभं व्रतरत्नं तु, सर्वधर्मिमहात्मनाम् । केनचिद्रक्षितं शुद्धं त्वादृशैव परं गुरो ! ॥ ३०२ ॥ निर्दोषाऽऽहारपात्रादीन् साधूपकरणं विना । क्षारपिण्डं च वस्त्रेषु, स्वोपयोगे न लेभिषे ॥ ६०३ ।। निश्चयसे भक्ति के साथ गुरुमूर्तिकी पूजा, दर्शन, स्तुति से और गुरुके नामका जाप करने से उन लोगोंकी वांछित सिद्धियाँ सिद्ध हो रही हैं ।। ६०० ॥ सब जगह उन गुरु मूर्तियोंके आगे अनेक लोग भावना भाते हैं, गुरुमहाराजके उत्तम गुणोंके समुदायकी कीर्तना करते हुए स्तुति कर रहे हैं ।। ६०१ ।। वह स्तुति ऐसी है कि सभी धर्मवाले
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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