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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। शिष्यों सहित 'बाली' पधारे और आठ दिनके महोत्सव सहित तीन श्रावकोंको दीक्षा देकर वहाँसे उत्तम तीर्थोकी यात्राके लिये गुरुदेवने विहार किया श्रीकेसरियाजी, 'सिद्धाचलजी' और भोयणीजी आदि अनेक तीर्थोकी विधिसे उत्तम यात्रा करते हुए शहर 'सूरत' पधारे ॥३३७-३४०॥ आडम्बरैः समं संधैः, गुरोश्च प्राविशत्पुरम् । आदिमेऽत्र बहुश्राद्धाः, षड्द्रव्यादिविचक्षणा::३४१॥ गुरुमेनं महाराज, ज्ञात्वा विद्वांसमुत्तमम् । कर्कशान कर्कशान् प्रश्नान् , पप्रच्छुर्विविधान् वरान् तदुत्तराण्यपूर्वाणि, गुर्वास्येन वराणि वै । जहृषुस्ते निशम्यैव, तुतुषुस्तं पुनः पुनः ॥ ३४३ ।। चतुर्मासीस्थितौ धर्मे-ष्यालु-निन्दकदुर्जनः । कियदज्ञानिभिः श्राद्ध-धर्ममर्मानभिज्ञकैः ॥ ३४४ ।। यहाँपर श्रीसंघने अतीव धूमधामके साथ गुरूका नगर प्रवेश कराया । यहाँके बहुतसे श्रावक षड्द्रव्यादिक पदार्थोके अत्यंत ज्ञाता हैं ॥ ३४१ ॥ अतः इन आचार्यवर्यको प्रकाण्ड विद्वान् जानकर, विविधप्रकारके शास्त्रीय गूढ एवं कठिनसे भी कठिन अच्छे २ प्रश्न पूछे ॥ ३४२ ॥ युक्ति पूर्वक उनके उत्तरोंको सुनकर श्रावकवर्ग अपने २ मनमें अति हर्ष व संतोषको प्राप्त हुए ॥ ३४३ ॥ चातुर्मासकी
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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