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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । आगम उनकी पंचाङ्गी और अनेक प्रकारके नये जूने ग्रन्थ गुरुमहाराजकी सुकृपासे संगृहीत हैं || ३३५ || विहृत्याथ गुडाग्रामे, धर्मनाथजिनेश्वरम् । माघेsसौ शुभ्रपञ्चम्या - मस्थापयत्तमुद्धवैः ॥ ३३६ ॥ ततोऽगाच्छिवगञ्जे च, गुरुनिर्देशगामिनः । सहिष्णोः शिष्य भक्तस्य, मोहनविजयस्य वै । ३३७| हृष्टस्वान्तेन पंन्यास - पदं प्रादात्सुशिक्षया । बालीपुर्यां समेत्याऽसौ, तिथिशिष्यैः समन्वितः ३३८ दीक्षां दत्त्वा त्रीछ्राद्वान्, ह्यष्टघस्त्रैर्महोत्सवैः । सत्तीर्थानां च यात्राये, विजहार ततो गुरुः ॥ ३३९ ।। ३० - घुलेवादितीर्थयात्रा, सूर्यपुरे चर्चायां विजयश्च तीर्थधू लेव- सिद्धाद्रि भोयणीत्यादिकां गुरुः । सद्यात्रां विधिना कुर्वन्नाऽऽगात्सूरतपत्तने ॥ ३४० ॥ बाद विहार कर गुड़ा गाँव पधारे, यहाँ 'अचलाजी' के मंदिर में माघ सुदि ५ के रोज महोत्सव के साथ श्रीधर्मनाथ आदि जिनेश्वरों की स्थापना की ।। ३३६ ॥ वहाँसे शहर शिवगंज पधार कर खुश दिलसे अनेक सुशिक्षाओंके साथ गुरुआज्ञा में चलनेवाले सहनशील भक्त शिष्य मुनि श्री मोहनविजयजी को पंन्यास का पद प्रदान किया और १५
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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