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________________ कृमारविहारशतकम्॥ ॥६ ॥ ति श्री पार्श्वनाथ प्रजुने श्रावको चंद्रकांतमणिना अने रुपाना जाना कनशोथी स्नात्र करावे छे ते वखते ते कलशनी अंदरयी अमृतना जेवी उज्वब कांति प्रजुना मस्तक नपर धारायी वारंवार पडे , ते जोइ जसविना पण तेओ स्नात्र करवायी विराम पामता नयी. एए विशेषार्थ-ते चैत्यमा रहेता श्री पार्श्वनाथ प्रजुने श्रावको चंडकांत तथा रुपाना जन कलशोथी स्नात्र करावे , ते वखते प्रजुना मस्तकपर तेक शोनी नज्वल कांति परवायी ते जल वगरना थया होय तो पण तेनी कांतिने बस्ने ते श्रावको काशमांयी जन पके, एवं धारी स्नात्र करतां विराम पामता नथी. अर्थात्. कलश खाती थइ गया होय तोपण तेओ तेने मस्तकपर धरी राखे ने, कारण के, कलशनी उज्वल कांतिने तेओ जलनी धारा पमे , एम मानी प्रजुना मस्तकपर ते काशो धरी राखे . ते चैत्य
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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