________________
कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द
अवरद्धा (४६.२७) : अपराद्धा (सं.); साँप से डँसी गई । ( 'प्राकृतशब्दमहार्णव' में इस शब्द का अर्थ अपराध भी है और विशेषण ('अपराद्ध' ) के रूप में 'अपराधी' एवं 'विनाशित' अर्थ भी हैं। यहाँ संघदासगणी का, साँप के अपराध करने से तात्पर्य है ।)
५७५
अवारीए (५१.२१) : आपणे (सं.); यह देशी शब्द है : 'आवंणे अवारो अवारी अ।'—देशीनाममाला (१.१२) । अवारीए = दुकान में । अविकिण्णमप्पयाए (१३६.१२-१३ ) : अविकीर्णपदया या अविकीर्णात्मपदया (सं.), प्रसंगानुसार अर्थ: जिसके चरणचिह्न बिखरे नहीं हैं, ताजा हैं। 'मप्प' का अर्थ यदि 'माप' लिया जाय, तो अर्थ होगा : जिसके चरणों की आकृति या माप
चिह्न अक्षुण है । कथाकार द्वारा प्रयुक्त समस्त पदों में 'म' के आगम की प्रवृत्ति का वैचित्र्य अनेक स्थलों पर परिलक्षितव्य है । मूलग्रन्थ के सम्पादकों के अनुसार 'म' आगम की यह प्रवृत्ति आगमिक है। जैसे : 'जिणवरमुद्दिट्ठो' < जिनवरोद्दिष्ट : (१५.९), ‘जोव्वणमुदये' < यौवनोदये (२०.२१) आदि ।
[आ]
आइवाहिग (१५.२०) : आतिवाहिक (सं.); यात्रा - सहचर । आगम के अनुसार, देवविशेष, जो मृत जीव को दूसरे जन्म में ले जाने के लिए नियुक्त है ।
आऊंजण (३६१.६) : आकुंचन (सं.); दही जमाने के लिए औंटे हुए दूध में डाला जानेवाला दही या और कोई खट्टी चीज; जामन, जोरन ।
आगंपेऊण (३०५.१८) : आकम्पयित्वा (सं.); आराधना से द्रवित कर; प्रसन्न कर; विचलित
कर ।
आडत (१४४.१३) : आदत्त (सं.), किराये पर दिया गया।
आदण्णा (९५.११) : स्त्री. देशी शब्द । व्याकुल; व्यस्त । मूलपाठ : 'अण्णेण कज्जेण अहं आदण्णा' = मैं दूसरे काम से व्यस्त हूँ (सत्यभामा की उक्ति ) ।
आयंबिल (२५.७) : आचाम्ल (सं.), जैन मुनियों द्वारा पारण (व्रतान्त भोजन) में लिया जानेवाला कांजी - सहित केवल भात का आहार ( आचाम्लाहार) । आयरक्ख (१३०.१६) : आत्मरक्षक (सं.); अंगरक्षक (बॉडीगार्ड ) । आयसकीलुष्पालिएसु (१३८.१६) : आयसकीलोत्पीडितेषु (सं.); लोहे की कील से उत्पीडित रहने या होने पर भी। 'उप्पीलिय' की जगह 'उप्पालिय' प्रयोग भी अपना स्वर- वैपरीत्यमूलक ('पी' के स्थान पर 'पा') वैचित्र्य से संवलित है । प्रसंग को थोड़ा अन्तरित कर यदि 'उत्पाटितेषु' ('उप्पालिएसु') संस्कृत-रूप माना जाय, तो स्वर- वैपरीत्य की कल्पना अपेक्षित नहीं रहेगी। अर्थ होगा लोहे की कील को शरीर से उखाड़ लेने पर भी रक्त नहीं निकलता आदि ।
:
आल : (२९५.१५) : आल (सं.), दोषारोपण, कलंक का आरोप ।