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________________ ५७४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा अपरिच्चएणं (१४५.२३) : अपरित्यागेन (सं.); यह निषेधमूलक विध्यर्थक प्रयोग है। इसमें विरोधार्थक नञ् के साथ ही 'विनायोगे तृतीया' भी है। अपरित्याग, अर्थात् परित्याग के विपरीत–संग्रह । मूलार्थः धन-संग्रह किये विना। अपरियाक्त (१७८.१७) : अपर्यावृत्त (सं.), असमाप्त; आनुक्रमिक । कथाकार ने आनु क्रमिक वंश-परंपरा के प्रसंग में 'अपरियावत्त' का प्रयोग किया है: 'वंसे अपरियावत्ते'। अप्फोडेऊण (२५.१५) : आस्फोटयित्वा (सं.), ताली बजाकर । (श्रावकों द्वारा मुनियों की वन्दना करने के बाद ताली बजाने की प्रथा ।) अब्भुसत्तमिव (१३७.२३) : अभ्युच्छ्वसन्निव (सं.); उसाँसें लेता हुआ-सा। अमाधामो (१९७.६-७) : अमाघात: (सं.), अभयघोषणा, जीवहिंसा की निषेधाज्ञामूलक घोषणा । (इसका एक और प्राकृत-रूप 'अमग्घाय' भी है।) अमिला (२१८.९) : [देशी] ऊनी वस्त्र; भेड़। अम्मयागाहिं (१३२.२६) : अम्बिकाभि : या अम्बाभि: (सं.), माताओं-कुलवृद्धाओं द्वारा। अम्हित (२४८.६) : आश्चर्यित (सं.), चकित; विस्मित । विम्हित' (विस्मित) के तर्ज पर ___ 'अम्हित' शब्द कथाकार ने गढ़ लिया है। संस्कृत का आश्चर्यसूचक 'अहो' शब्द प्राकृत में 'अम्हो' होता है। 'अम्हो' से ही कृदन्त 'क्त' प्रत्यय जोड़कर 'अम्हित' शब्द बनाया गया है। अल्लिया (६०.२२) : उपसर्पिता (सं.), सामने उपस्थित किया [देशी शब्द]। अवंगुतदुवार (२२१.२४२५) : अपावृतद्वारं (सं.), खुला हुआ द्वार। 'अवंगुत' देशी शब्द है, जिसका अर्थ होता है-खुला हुआ। सं. 'अनवगुण्ठित' के समानान्तर इसे रखा जा सकता है। अवतासिउ (९६.६) : आश्लिष्य (सं.), आलिंगन करके। 'अवयासिउ' का 'अवतासिउ' रूप ('य' की जगह 'त') संघदासगणी के विशिष्ट प्रयोगाग्रह का निदर्शन है। अवफुरो चेव विफुरिऊण (२९३.११) : अवस्फुरश्चैव विस्फुरित्वा (सं.); आकारिक विस्तार को और अधिक विस्तृत कर; विस्तृत होने के बावजूद और अधिक विस्तृत होकर। अवमासेऊणं (२२१.२७) : अवमासयित्वा (सं.) अदला-बदली करके । तौलने-बदलने के अर्थ में 'मस्' धातु का पाठ पाणिनि-व्याकरण में किया गया है। चादर और अंगूठी की अदला-बदली के प्रसंग में कथाकार ने इस पूर्वकालिक क्रिया का प्रयोग किया है। मूलपाठ है: 'तओ अणाए अवमासेऊणं णियगमुत्तरीयं मम दिण्णं मदीयं गहियं अंगुलेयगं च दिण्णं ।' (तब उसने अदला-बदली करके अपनी चादर मुझे दे दी और मेरे द्वारा दी गई अंगूठी ले ली।)
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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