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________________ १५८ वसुदेवहिण्डी ': भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा प्रज्ञप्ति - विद्या से सम्पन्न होना । इन्द्रजाल - विद्याओं में प्रज्ञप्तिविद्या अपने अतिलौकिक चमत्कारों के कारण सर्वश्रेष्ठ थी । रामण (रावण) ने भी प्रज्ञप्ति-विद्या की साधना की थी । इसीलिए, विद्याधरों के सामन्त उसकी सेवा में विनम्रतापूर्वक तत्पर रहते थे । प्रज्ञप्ति - विद्या सिद्ध हो जाने से विद्याधर भी वशंवद हो जाते थे । वसुदेव को अंजन - गुटिका की सिद्धि पहले से थी, किन्तु प्रज्ञप्ति - विद्या उन्हें अपनी विद्याधर - पत्नी से ही प्राप्त हुई थी । विद्याओं के धारण करने के कारण ही 'विद्याधर' संज्ञा सार्थक थी । विद्याओं के अधिपति विद्याधर ही होते थे । 'वसुदेवहिण्डी' में प्रज्ञप्ति-विद्या का प्रमुख प्रसंग यथोक्त आठ स्थलों पर उपस्थित हुआ है । १. ऊपर रुक्मिणीपुत्र प्रद्युम्न के प्रसंग में प्रज्ञप्ति-विद्या की ध्वंस और निर्माण करने की शक्ति की चर्चा की गई है । यहाँ एक और प्रसंग उल्लेख्य है कि युद्धोपकरणों से सज्जित होकर यादवयोद्धा जब से लड़ने निकल पड़े, तब प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति के प्रभाव से यादवयोद्धा के आयुध व्यर्थ कर दिये, घोड़े हाथी नष्ट कर दिये । प्रद्युम्न के आक्रमण करते ही यादवयोद्धा विरथ हो गये और मूक दर्शक की भाँति खड़े रह गये । इसके बाद युद्ध के लिए स्वयं कृष्ण आये और उन्होंने ज्योंही अपना शंख बजाने लिए उसे हाथ में लिया, त्योंही प्रद्युम्न के आदेश से प्रज्ञप्ति ने उसमें बालू भर दी । शंख निःशब्द हो • गया । कृष्ण ने जब सुदर्शन चक्र छोड़ा, तब वह भी प्रज्ञप्ति - विद्या के प्रभाव से प्रद्युम्न के रथ की प्रदक्षिणा करके लौट गया। वैदिक परम्परा में सुदर्शन चक्र को अमोघ कहा गया है, किन्तु श्रमणपरम्परा की प्रज्ञप्ति-विद्या उससे भी अतिशायी हो गई है । २. जाम्बवती-पुत्र शाम्ब ने भी प्रज्ञप्तिविद्या के बल से ही सत्यभामा के पुत्र भानु को बार-बार परेशानी में डाला था और उसके साथ विवाह के लिए निश्चित की गई आठ सौ राजकन्याओं से स्वयं विवाह कर लिया था । ३. श्यामलीलम्भ में अंगारक विद्याधर के परिचय - प्रसंग में भी प्रज्ञप्ति-विद्या की चर्चा आई है। राज्य-प्राप्ति और प्रज्ञप्ति-प्राप्ति दोनों का समान मूल्य था । इसीलिए, अंगारक ने अपनी माँ विमलाभा के परामर्शानुसार राज्य के बदले प्रज्ञप्ति-विद्या ही ग्रहण की थी। राज्य उसके छोटे भाई अशनिवेग ने स्वीकार किया । प्रज्ञप्ति-विद्या के बल से ही अंगारक माया के प्रदर्शन में कुशल था । तलवार से श्यामली को दो टुकड़े करके दो श्यामली बना देना और लड़ते-लड़ते अदृश्य हो जाना आदि प्रज्ञप्ति ही माया के खेल के रूप में प्रदर्शित हैं । ४. चौथे नीलयशालम्भ में उल्लेख है कि भगवान् ऋषभदेव के सम्बन्धी नमि और विनमि नाम के विद्याधर हाथ में खङ्ग लेकर अविश्रान्त भाव से सभास्थल में ध्यान के समय भगवान् की सेवा करते थे । उनकी भगवत्सेवा पर प्रसन्न होकर नागराज धरण ने उन दोनों के लिए वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्वों में स्थित दो विद्याधर- श्रेणियाँ प्रदान कीं। चूँकि वहाँ पैदल जाना सम्भव नहीं था, इसलिए आकाशगामिनी विद्या भी दी। इसके अतिरिक्त, नागराज ने उन्हें गन्धर्व और नागजाति की महारोहिणी, प्रज्ञप्ति, गौरी, विद्युन्मुखी, महाजाला, तिरष्क्रमिणी (तिरस्करिणी), बहुरूपा आदि अड़तालीस हजार विद्याएँ भी प्रदान कीं । ५. रामण द्वारा प्रज्ञप्ति-विद्या की सिद्धि का उल्लेख पहले हो चुका है। ६. वसुदेव ने अपनी विद्याधरी पत्नी प्रभावती से प्रज्ञप्ति-विद्या प्राप्त कर अपने विद्याधर प्रतिद्वन्द्वी मानसवेग, अंगारक, हेफ्फग और नीलकण्ठ– इन चारों को परिवार सहित पराजित किया था ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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