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________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ ७. इक्कीसवें केतुमतीलम्भ की कथा है कि प्रशस्त परिणामवाला अनन्तवीर्य भी नरक से उद्वर्तित होकर जम्बूद्वीपस्थित भरतक्षेत्र में, वैताढ्यपर्वत की उत्तरश्रेणी में अवस्थित गगनवल्लभ नगर में, राजा मेघवाहन की रानी मेघमालिनी के गर्भ से मेघनाद नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। क्रम से वह बड़ा हुआ और एक सौ दस नगरों के राज्यों में अपने पुत्रों को स्थापित कर स्वयं विद्याधर-चक्रवर्ती के भोगों का उपभोग करने लगा। किसी एक दिन वह मन्दार पर्वत पर गया। वहाँ उसने नन्दनवनस्थित सिद्धायतन में प्रज्ञप्ति की सिद्धि के लिए भक्तिभावपूर्वक जिनपूजा की। ८. विद्याधरों की भाँति विद्यारियों को भी प्रज्ञप्ति-विद्या सिद्ध थी। उक्त केतुमतीलम्भ में ही कथा आई है कि वैताढ्य पर्वत की उत्तर श्रेणी में स्थित किन्नरगीत नामक नगर के राजा दीप्तचूड की पुत्री सुकान्ता थी। उसी की पुत्री शान्तिमती मणिसागर पर्वत पर प्रज्ञप्ति-विद्या की साधना कर रही थी। उसी समय एक पापी विद्याधर उसे खींच ले गया। किन्तु, उसी क्षण उसकी प्रज्ञप्ति-विद्या सिद्ध हो गई और वह पापी विद्याधर उस विद्या के भय से भाग खड़ा हुआ। प्रज्ञप्ति-विद्या परचित्तज्ञान(टेलिपैथी) और दूरदर्शक यन्त्र (टेलिस्कोप) का भी काम करती थी। तभी रुक्मिणीपुत्र प्रद्युम्न ने द्वारवती से दूर रहकर भी प्रज्ञप्तिविद्या के द्वारा स्वजन-परिजन से घिरे भानुकुमार (सत्यभामा-पुत्र) को द्वारवती में खेलते हुए देखा था और उसके चित्त के भावों को पढ़ लिया था (पीठिका : पृ. ९४)। ___ उक्त विद्याओं की कल्पना केवल ऐन्द्रजालिक कुशलता के रूप में ही नहीं, अपितु देवी के रूप में भी की गई। इसीलिए, प्रज्ञप्ति-विद्या को 'भगवती' कहा गया है। वैदिक तन्त्र में भी दस महाविद्याओं की कल्पना देवियों के रूप में ही की गई है। बन्धविमोक्षणी (श्यामलीलम्भ : पृ. १२५) : इस इन्द्रजाल-विद्या के द्वारा बन्धन से मुक्त हो जाने की क्षमता प्राप्त होती थी। वसुदेव ने अपनी तीसरी विद्याधरी पत्नी श्यामली को बन्धविमोक्षणी-विद्या सिखलाई थी, जिसे उन्होंने शर (सरकण्डे) के वन में सिद्ध किया था। श्यामली को वसुदेव के प्रतिनायक अंगारक से बराबर पकड़े जाने का डर बना रहता था, इसीलिए उसे यह विद्या वसुदेव ने दी थी। बन्धविमोचनी और प्रहरणावरणी(केतुमतीलम्भ:पृ. ३१८): युद्ध में लड़ते समय बन्दी होने पर मुक्ति दिलानेवाली तथा अस्त्रप्रहार को रोक लेनेवाली इन दोनों विद्याओं से सम्पन्न योद्धा अपराजेय होता था। चमरचंचा नगर के राजा अशनिघोष ने जब पोतनपुर के राजा श्रीविजय की अपहृता रानी १.(क) वैदिक तन्त्रोक्त दस महाविद्याएं इस प्रकार है : काली नारा महाविद्या पोडशी भुवनेश्वरी । भैरवी छिनमस्ता च मातङ्गी विजया जया ॥ (ख) मतान्तर में दस महाविद्याएं हैं : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका । नेपाल महाराज प्रतापसिंह-कृत 'पुरश्चर्यार्णव' ('शक्तिसंगम' के पृ.१३ पर उद्धृत) में दस महाविद्याएँ इस प्रकार हैं : काली तारा छिन्नमस्ता सुन्दरी बगला रमा। मातङ्गी भुवनेशानी सिद्धविद्या च भैरवी ॥ धूमावती च दशमी महाविद्या दश स्मृताः।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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