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________________ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना अलंकृति से भी वंचित नहीं हैं । ऋग्वैदिक ऋषियों ने कतिपय अलंकारों का प्रयोग सिद्धहस्त कवियों की भाँति किया है । सम्भवत: उस समय तक कोई निश्चित काव्य-सिद्धान्त तो बन नहीं पाया था, परन्तु उसके बीज वहाँ निहित हैं । इस प्राचीन परम्परा के रहते हुए भी अलंकृत काव्य-शैली ऋग्वेदादि की 'ऋणी' नहीं मानी जा सकती। कारण यह है कि विकसनशील महाकाव्यों पर अवलम्बित अलंकृत महाकाव्यों में काव्य-सौष्ठव के प्रति विशेष आग्रह होता है। इसीलिए इन महाकाव्यों में कलात्मकता और बौद्धिकता का अत्यधिक समावेश तथा नैसर्गिकता का ह्रास होता गया। इस ह्रास को देखकर ही सम्भवत: कतिपय विद्वानों ने इन अलंकृत महाकाव्यों को अनुकृत महाकाव्य अथवा दरबारी महाकाव्य (Court Epic) संज्ञा से अभिहित किया । डॉ. एस.एन. दासगुप्ता ने अपने संस्कृत साहित्य का इतिहास' के प्रथम खण्ड की भूमिका में इस मत का निराकरण किया है कि काव्य-शैली का अर्थ अलंकृत शैली होता है । उनका कथन यह है कि विन्टरनित्ज़ का यह मत कि संस्कृत के काव्य का अर्थ प्रयत्नसाध्य, चमत्कार-प्रधान और अलंकारों से बोझिल काव्य है, परवर्ती ह्रासोन्मुख सामन्तयुगीन कवियों के काव्यों के लिये ही सही है, पूर्ववर्ती कवियों-अश्वघोष तथा कालिदास-के काव्यों पर चरितार्थ नहीं किया जा सकता। अत: संस्कृत के सम्पूर्ण काव्य-साहित्य को अलंकृत-काव्य कह देना तर्कसंगत नहीं। इस कथन का सामान्यत: अभिप्राय यह है कि संस्कृत का काव्य-साहित्य प्रारम्भ से ही आडम्बरपूर्ण और रूप-शिल्प प्रधान नहीं था। उसके आरम्भिक महाकाव्य रसात्मक हैं। काव्य-साहित्य को अलंकृत-साहित्य स्वीकार करने वालों के मतानुसार भी अलंकृत (Ornate) शब्द से तात्पर्य 'Epic of Art' या Artificial' से ही है, जिसका अनुवाद कलात्मक या अनुकृत महाकाव्य किया जाता है । मैकडानल भी पाँचवीं से बारहवीं शती तक के महाकाव्यों को वास्तविक रूप में अनुकृत अथवा शाब्दिक अर्थ में अलंकृत महाकाव्य कहते हैं। जैन परम्परा में प्रथमानुयोग के अन्तर्गत आने वाले १. डॉ.एस.एन.दासगुप्ता : ए हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर,खण्ड १, भूमिका, पृ.१४,१५ २. "As the popular epic poetry of Mahabharat was the chief source of the puranas, so the Ramayana, the earliest artificial epic, was succeeded, though after a
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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