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________________ १५ सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा पौराणिक विशेषताओं वाले विमलसूरी कृत पउमचरिय, जिनसेन कृत हरिवंशपुराण, जिनसेन कृत महापुराण, शीलाङ्क कृत चउप्पनमहापुरिसचरिय और हेमचन्द्र कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित जैसे ग्रन्थों को जैन संस्कृति का विकसनशील महाकाव्य कहा जा सकता है । अलंकृत महाकाव्य सांस्कृतिक केन्द्रों और राज-दरबारों में शिक्षा और संस्कृति के विकास के साथ-साथ लिखने की प्रथा भी विकसित हुई और काव्य-रचना भी एक विशिष्ट कला के रूप में स्वीकृत हुई। उन केन्द्रों में प्राचीन गाथाओं, कथाओं और गाथाचक्रों को लिपिबद्ध किया गया और इनके गायक चारण आदि सामन्तों के दरबारों में आश्रय पाने लगे। उस वातावरण में वैयक्तिक और सचेत काव्य-रचना का होना स्वाभाविक ही था। कालान्तर में ये शिष्ट काव्य पृथक् विधा के रूप में विकसित होकर अलंकृत तथा जटिल होने लगे। इसी परिवेश में इन्हीं कवियों के माध्यम से अलंकृत महाकाव्य की रचना प्रारम्भ हुई । इन अलंकृत महाकाव्यों के "Epic of Art", "Imitative Epic", "Literary Epic"आदि नाम भी प्रचलित हैं। ये अलंकृत महाकाव्य प्राय: विकसनशील महाकाव्यों अथवा पूर्ववर्ती गाथाचक्रों और इतिहास-पुराणों से ही कथावस्तु लेकर रचे जाते हैं । स्पष्ट ही है कि ये किसी कवि विशेष तथा काल विशेष की रचना होते हैं । इनमें विकसनशील महाकाव्यों की अपेक्षा कृत्रिमता अधिक होती है । अत: काव्य-सृजन इनका मुख्य लक्ष्य होता है और सामाजिक मूल्यों की स्थापना करना गौण । वर्जिल का 'इनीड' (Aeneid) तथा मिलटन का 'पैराडाइज़ लास्ट' (Paradise Lost) आदि पाश्चात्य महाकाव्य तथा अश्वघोष, कालिदास, माघ, भारवि, स्वयंभू, पुष्पदन्त आदि कवियों के महाकाव्य भारतीय परम्परा के अलंकृत महाकाव्यों की शैली के अन्तर्गत आते हैं। __ भारतीय साहित्य में सरस कविता का आदि रूप वैदिक काव्य में दृष्टिगोचर होता है । विशेषत: ऋग्वेद के उषा-सूक्त कवि-कल्पना के मनोरम परिणाम हैं । वे १. हिन्दी साहित्य कोश,भाग १,पृ.५७९ २. वही; तथा Shipley, J.T. : Dictionary of Terms, p. 101. ३. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १,पृ.५७९ World Literary
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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