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________________ १९२ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना चिरस्य युद्ध्वा स पपात निष्क्रिय: सहैव शुद्धान्तवधूजनाश्रुभिः । सुरासुराणां कुसुमाञ्जलिर्दिवस्तयोरपप्तन्मधुपायिभि: समम् ॥ यहाँ खरदूषण अथवा कीचक के निष्क्रिय होने का और रानियों के अश्रुपात का सहभाव 'सह' पद से तथा पुष्पाञ्जलियों के गिरने का तथा भौंरों के गिरने का सहभाव समम्' पद से दिखाया गया है, अत: सहोक्ति अलङ्कार है। ११. अर्थश्लेष यदि स्वाभाविक एकार्थ प्रतिपादक शब्दों के द्वारा अनेक अर्थों का कथन किया जाए तो वहाँ अर्थश्लेष होता है । इसमें श्लेष अर्थाश्रित होता है, अत: शब्दपरिवृत्तिसहत्व होता है, जबकि शब्दश्लेष में शब्दपरिवर्तन सम्भव नहीं है। द्विसन्धान में इस श्लेष का विन्यास भी हुआ है स्थाने मातुलपुत्रस्य परिपात्यै तवोद्यमः । आपदीषल्लभा: कर्तुमुपकारा हि मानिनाम् ।। यहाँ प्रकरणादि का नियन्त्रण न होने के कारण मातुल-पुत्र' शब्द से रामायण पक्ष में खर-दूषण तथा महाभारत पक्ष में श्री वासुदेव - दोनों वाच्य हैं। इसको पर्यायवाची शब्द से बदल देने पर भी अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता, अत: अर्थश्लेष है। १२. अर्थान्तरन्यास जहाँ विशेष से सामान्य, सामान्य से विशेष, कारण से कार्य या कार्य से कारण साधर्म्य किंवा वैधर्म्य के द्वारा समर्थित होता हो, उसे अर्थान्तरन्यास कहते हैं। द्विसन्धान में अर्थान्तरन्यास निम्न प्रकार से विन्यस्त हुआ है शस्यकं हरितग्रासबुद्ध्या वातमजा मृगाः । ढौकन्ते चापयन्त्यस्मिंश्चलानामीदृशी गतिः ।। १. द्विस.,६३६ २. 'शब्दैः स्वभावादेकार्थः श्लेषोऽनेकार्थवाचनम् ।', सा.द.,१८.५८ ३. द्विस.,७.२५ ४. सा.द.१०.६१-६२ ५. द्विस.,८.१६
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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