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________________ १९३ अलङ्कार-विन्यास यहाँ वायु से भी द्रुतगामी हिरण हरी घास समझकर नीलमणियों के पास जाते हैं और निराश होकर लौटते हैं इस वाक्य 'विशेष' से चंचलों की यही गति होती है- इस 'सामान्य' कथन का समर्थन हो रहा है, अत: अर्थान्तरन्यास अलङ्कार है। इसी प्रकार - कलत्रपुत्रमित्राणि गृहीत्वा तत्र ते जनाः । यथायथं पलायन्त भावि भद्रं हि जीवितम् ॥१ यहाँ भी, समस्त नागरिक अपनी स्त्री, बच्चे तथा मित्रों को साथ लेकर भाग खड़े हुए- यह 'विशेष' कथन भविष्य की कल्याणमय कल्पना पर ही जीवन आश्रित है- इस 'सामान्य' कथन का समर्थन कर रहा है, अत: अर्थान्तरन्यास अलङ्कार है। १३. आक्षेप जब विवक्षित अथवा अभीष्ट वस्तु की विशेषता प्रतिपादन करने के लिये निषेध-सा किया जाए, वहाँ आक्षेप अलङ्कार होता है । द्विसन्धान में आक्षेप का विन्यास इस प्रकार हुआ है गजेषु नष्टेष्वगजेष्वनायकं रथेषु भग्नेषु मनोरथेषु च। न शून्यचित्तं युधि राजपुत्रकं पुरातनं चित्रमिवाशुभद् भृशम् ॥ यहाँ सामान्य रूप से विजय के मनोरथ समाप्त हो जाने पर स्तब्धचित्त तथा नेताविहीन वंशक्रम के राजपुत्रों को सूचित किया गया है तथा वे पुराने चित्र के समान अत्यन्त मनोहर नहीं लगते-इस कथन विशेष से राजपुत्रों की उत्कृष्टता का निषेध सा किया गया है, अत: आक्षेप अलङ्कार है । १४. विरोध जाति, जहाँ जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य के साथ विरुद्ध भासित हो; गुण गुणादिक तीन के साथ, क्रिया क्रिया और द्रव्य के साथ तथा द्रव्य द्रव्य के साथ विरुद्ध भासित हो वहाँ विरोध अलङ्कार होता है। तात्पर्य यह है कि जहाँ वास्तविक १. द्विस.,९३८ २. 'वस्तुनो वक्तुमिष्टस्य विशेषप्रतिपत्तये । निषेधाभास आक्षेपो।',सा.द,१०६५। ३. द्विस,६.३० ४. सा.द.,१०६८-६९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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