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________________ अलङ्कार - विन्यास १९१ जड़ता रूप धर्म से युक्त बताया है, तो उपमान वाक्य में किसी भी साहसी पुरुष को कोई भी वस्तु खोने से पश्चात्तापयुक्त बताया है, अत: दृष्टान्त अलङ्कार है । ९. व्यतिरेक उपमान की अपेक्षा उपमेय के उत्कर्षापकर्ष वर्णन में व्यतिरेक अलङ्कार होता है ।' द्विसन्धान में व्यतिरेक- विन्यास इस प्रकार हुआ हैदेशकालकलया बलहीनः किं व्यवस्यति युतोऽपि शृगालः । सत्रयेण सहितश्च्युतबोध: किं न याति शरभस्तनुभङ्गम् ॥२ यहाँ शत्रुपक्ष की अपेक्षा राम या जरासन्ध की शक्ति की न्यूनता का वर्णन हुआ है, अत: व्यतिरेक है। १०. सोक्ति सह भाव की उक्ति के कारण इसे सहोक्ति कहते हैं । इसमें सह, साकं, सार्धं आदि शब्दों के द्वारा एक अर्थ से सम्बद्ध शब्द दो या अनेक अर्थों का बोध कराता है । सहोक्ति में एक अर्थ प्रधान होता है और दूसरा गौण । इसके मूल में अतिशयोक्ति का रहना अत्यावश्यक है । ३ द्विसन्धान महाकाव्य में इसका विन्यास इस प्रकार हुआ है I नृपौ रुषाऽपातयतां शिलीमुखान्समं सपत्ना हृदयान्यपातयन् । विदूरमुच्चैः पदमध्यरुक्षतां भियाध्यरुक्षन्युधि वामलूरकम् ॥ यहाँ राघव-पाण्डवों द्वारा शत्रुओं पर बाण गिराने का और शत्रुओं द्वारा हृदय गिराने अथवा निराश होने का, इसी प्रकार राघव पाण्डव राजाओं के पदारूढ़ होने का तथा भयाक्रान्त शत्रु राजाओं के दूर पर्वतों पर जाकर बिलों में छिपने का सहभाव ‘समम्' पद के द्वारा दिखाया गया है, अतः सहोक्ति अलङ्कार है। इसी प्रकार १. ‘आधिक्यमुपमेयस्योपमानान्न्यूनताथवा ॥ व्यतिरेक' सा.द., १०.५२ २. ३. द्विस., १०.३० 'सहार्थस्य बलादेकं यत्र स्याद्वाचकं द्वयोः । सा सहोक्तिर्मूलभूतातिशयोक्तिर्यदा भवेत् ॥', सा.द., १०.५५ ४. द्विस.,६.८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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