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________________ १९० सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य चेतना यहाँ सूर्य व चन्द्रमा परिभ्रमण कर सृष्टि को आह्लादित करते हैं- इस उपमान से दशरथ अथवा पाण्डु राजधानी में रहकर ही गुप्तचरों के माध्यम से संसार का निग्रह करते हैं - इस उपमेय का ज्ञान होता है, अतः अतिशयोक्ति है । ७. दीपक पदार्थों में एक धर्म का सम्बन्ध हो अथवा अनेक क्रियाओं का एक ही कारक हो, वहाँ दीपक अलङ्कार होता है । ' द्विसन्धान में यह निम्न रूप में विन्यस्त हुआ है चतुर्दशद्वन्द्वसमानदेहः सर्वेषु शास्त्रेषु कृतावतारः । गुणाधिकः प्रश्रयभङ्गभीरुः पितुः कथञ्चिद्गुरुतां ललङ्गे ॥२ यहाँ ‘चतुर्दशद्वन्द्वसमानदेहः', 'सर्वेषु शास्त्रेषु कृतावतारः ’, ‘गुणाधिकः' तथा ‘प्रश्रयभङ्गभीरुः’ आदि अनेक गुणों का आधार एकमात्र राजपुत्र ही है, अत: दीपक अलङ्कार है। ८. दृष्टान्त सामान्यतः दृष्टान्त का अर्थ 'उदाहरण' से लिया जाता है । इसमें किसी बात को कहकर उसकी पुष्टि के लिये तत्सदृश अन्य बात कही जाती है। इसमें दो वाक्य होते हैं - एक उपमेय वाक्य तथा दूसरा उपमान वाक्य । दोनों के साधारण धर्म भिन्न होते हैं, किन्तु दोनों में बिम्ब- प्रतिबिम्ब जान पड़ता है या एक प्रकार का सादृश्य दिखायी पड़ता है । द्विसन्धान-महाकाव्य में इसका विन्यास इस प्रकार हुआ है हस्तच्युते गते क्वापि कीदृशोऽप्यनुशेरते । साम्राज्यमूलेऽतीतेऽपि तादवस्थ्यं ययौ रिपुः ॥४ यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से उपनिबद्ध उपमेय वाक्य में शत्रु की सामर्थ्य रूप विशेष अर्थ को साम्राज्यमूल हस्ति - अश्व- पदाति रूप के विनाश से उत्पन्न १. 'अप्रस्तुतप्रस्तुतयोर्दीपकं तु निगद्यते । अथ कारकमेकं स्यादनेकासु क्रियासु चेत् ॥', सा. द, १०.४९ २. द्विस, ३.३३ ३. 'द्रष्टान्तस्तु सधर्मस्य वस्तुनः प्रतिबिम्बनम् ।', सा.द., १०.५१ ४. द्विस., १८.८१
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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