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________________ १८८ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना प्रस्तुत पद्य में गहन वनों के कारण बड़ी-बड़ी नालियों से युक्त धारागृह (उपमान) में मोरों को अविद्यमान उपमेय मेघों की भ्रान्ति हो रही है, अत: भ्रान्तिमान् अलङ्कार है । इसी प्रकार - प्रियेषु गोत्रस्खलितेन पादयोन्तेषु यस्यां शममागता: स्त्रियः । स्वबिम्बमालोक्य विपक्षशङ्कया पुनर्विकुप्यन्ति च रत्नभित्तिषु ॥१ यहाँ रत्नजड़ित भित्तियों में दिखायी देने वाले प्रतिबिम्ब से नायिकाओं को अविद्यमान सपत्नी की भ्रान्ति हो रही है, अत: भ्रान्तिमान् अलङ्कार है। ४. निश्चय उपमान का निषेध करके उपमेय के स्थापन करने को निश्चय अलार कहते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में निश्चयालङ्कार का विन्यास इस प्रकार हुआ तत्याज पुत्रो विनयं कथञ्चिज्जहौ पिता नानुनयं कदाचित् । यत: पिता पुत्रमनन्यदाशं कस्यापि नाभूदपरुद्धवृत्तम् ।। यहाँ पुत्रों के विनयत्व तथा पिता के स्नेह अर्थात् आचरण की मर्यादा (उपमान) का निषेध कर दोनों के परस्पर निरपेक्षत्व (उपमेय) की स्थापना की गयी है, अत: निश्चय अलङ्कार है। ५. उत्प्रेक्षा उपमेय तथा उपमान के सादृश्य की सम्भावना को उत्प्रेक्षा कहते हैं। अभिप्राय यह है कि जहाँ किसी प्रस्तुत वस्तु की अप्रस्तुत के रूप में सम्भावना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलङ्कार होता है। यह ध्यातव्य है कि सम्भावना सन्देह और निश्चय के मध्य की स्थिति है । द्विसन्धान में उत्प्रेक्षा इस प्रकार विन्यस्त हुई है - निश्वासमुष्णं वचनं निरुद्धं म्लानं मुखाब्ज हदयं सकम्पम् । श्रमादिवाङ्गं पुलकप्रसङ्गं पदे पदेऽसौ बिभराम्बभूव ।। १. द्विस., १.३१ २. 'अन्यन्निषिध्य प्रकृतस्थापनं निश्चयः पुनः॥', सा.द.,१०.३९ ३. द्विस,३.३४ ४. 'भवेत्सम्भावनोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य परात्मना।'सा.द.,१०.४० ५. द्विस.,५.८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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