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________________ अलङ्कार-विन्यास १८७ होता है । द्विसन्धान-महाकाव्य में रूपक अलंकार का विन्यास इस प्रकार हुआ उरः श्रिय: स्थल कमलं भुजद्वयं समस्तरक्षणकरणार्गलायुगम्। जयश्रियः कृतविहारपर्वतौ समुन्नते भुजशिरसी बभार यः ॥२ प्रस्तुत पद्य में दशरथ या पाण्डु के वक्षस्थल, भुजाओं तथा स्कन्धों (उपमेय) का लक्ष्मी के निवासभूत कमल, समस्त संसार की रक्षा करने में समर्थ अर्गला युगल तथा विजयलक्ष्मी के कृत्रिम क्रीड़ा-पर्वतों (उपमान) में अभेदारोप स्थापित किया गया है, अत: रूपकालङ्कार है । इसी प्रकारप्ररोपयन्नयभुवि मूलसन्ततिं प्रसारयन् दिशि बहुशाखमन्वयम् । फलं दिशन् विपुलमपुष्पयापनं जनस्य य: समजनि कल्पभूरुहः ॥२ यहाँ राजा दशरथ अथवा पाण्डु (उपमेय) तथा कल्पवृक्ष (उपमान) में अभेद का आरोप करते हुए श्लेष के माध्यम से उनके कर्मों की समानता का उल्लेख किया गया है, अत: रूपक है। ३. भ्रान्तिमान् अत्यधिक सादृश्य के कारण उपमान में उपमेय की निश्चयात्मक भ्रान्ति को भ्रान्तिमान् अलङ्कार कहते हैं। भ्रान्तिरूप चित्तधर्म के विद्यमान होने के कारण इसमें किसी को एक वस्तु में अन्य वस्तु के भ्रम हो जाने का वर्णन होता है। यह भ्रम वर्णन वास्तविक न होकर कविकल्पित ही होता है। द्विसन्धान-महाकाव्य में इस अलङ्कार का विन्यास निम्न प्रकार से हुआ है अनेकमन्तर्वणवारितातपं तपेऽपि यन्त्रोद्धृतवारिपूरितम्। शिखावलान्यत्र वहताणालिकं करोति धारागृहमब्दशाङ्किनः ।। १. 'रूपकं रूपितारोपो विषये निरपह्नवे।'सा.द.१०.२८ २. द्विस,२.२ ३. वही,२.२२ ४. 'साम्यादतस्मिंस्तबुद्धिर्धान्तिमान् प्रतिमोत्थितः॥',सा.द.,१०.३६ ५. द्विस.,१.२३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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