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________________ अलङ्कार- विन्यास व ने ने पू रि पू ने व པ མ་མ་༥། ༣ ། བ ཝ་ལ་ཝ་ལྦ ཟ།ཕ། མ། य क्ष य ने पू रिरि पू ता ने १. काव्या., ३.७८ २. ३. द्विस.,१८.१०४ क्ष सर. कण्ठा., २.११५ क र्य क क्ष क 45 40 16 क्ष क्ष रि रि हरि : क्रान्तमतं भूतगरिमान्तगतं बत । वरित्सुं तत्र तष्ट्वा तमरिणान्तरतप्यत ॥ ३ क क ने ता पू ने य ता क्ष क्ष ता य ने १८१ to व E उपर्युक्त चित्र में वामभाग से दक्षिणभाग की ओर अथवा दक्षिणभाग से वामभाग की ओर, ऊपर से नीचे अथवा नीचे से ऊपर किसी भी प्रकार आवर्तन करने पर श्लोक-पादों का उत्थान हो जाता है, अतः सर्वतोभद्र चित्रालङ्कार है । (vi) गोमूत्रिका पू रि रि पू श्लोक के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में आये वर्णों की, एक-एक वर्ण के व्यवधान से जो समानरूपता होती है, उस दुष्कर चित्रविन्यास को गोमूत्रिका कहा जाता है ।१ इसके गोमूत्रिका नामकरण का कारण यह है कि यह मार्ग में चलते हुए गो के मूत्रपात से भूमि पर बनने वाली बहुकोणीय रेखाओं की आकृति वाला होता है । २ द्विसन्धान में इस चित्र का विन्यास निम्न पद्य में हुआ है व
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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