SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ he ह क्रां व रि त्सुं त 21 " त ظلو म्भू ग· सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना मां रि ग 阿 त त ष्ट्वा ᄑ णां इस गोमूत्रिका को पढ़ने का क्रम यह है - पहला श्लोकार्थ बनाने के लिये क्रमश: एक उपरिवर्ती और एक मध्यवर्ती वर्ण लेकर पढ़ते जायें तथा दूसरे श्लोकार्ध के लिये एक अधोवर्ती और एक मध्यवर्ती । ४. बन्ध - चित्र सामान्यतः आकार और बन्ध में कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता । किन्तु, परवर्ती काव्यशास्त्रियों ने तार्किक विवेचन द्वारा इनका भेद स्पष्ट किया है। उनके अनुसार ईश्वरकर्तृक पद्म, शैल आदि पर आधृत चित्र आकार हैं और ऐसी वस्तुओं के चित्र, जो ईश्वर से मनुष्यकृत होने के कारण द्विकर्तृक है, वे बन्ध हैं, जैसे- हल, मुसल आदि ।' भोज ने तो द्विचतुष्कचक्र, द्विशृङ्गाटक, विविडित, शरयन्त्र, व्योम तथा मुरज आदि बन्ध-1 - चित्रों का उल्लेख भी किया है । द्विसन्धान- महाकाव्य में उपलब्ध बन्ध-चित्रों का विवेचन इस प्रकार है १. विद्याधर : एकावली, बम्बई, १९०३, पृ.१८९-९१ २. सर. कण्ठा., २.३१८ tc प्य (i) शरयन्त्रबन्ध जहाँ चारों पादों को बन्ध में पंक्तिश: लिखने, प्रत्येक पाद के आदि भाग से प्रारम्भ करके तुरङ्ग पदक्रम से अन्त तक पहुँचने पर पादप्राप्ति होती है, उसे शरबन्ध कहा जाता है ।२ इस प्रकार पहले अवरोह क्रम से दो पाद निकलते हैं, तदन्तर दो आरोह क्रम से । द्विसन्धान-महाकाव्य में इस बन्ध का निबन्धन इस प्रकार हुआ है—
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy